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डिजिटल करंसी हो सकता है विकल्प?
डॉलर के एक विकल्प की तरह सीबीडीसी यानी सेंट्रल बैंक डिजिटल करंसी को देखा जा सकता है। हालांकि, इसमें चीन एक रिस्क की तरह उभर कर सामने आ सकता है। भारत समेत कुछ देश डिजिटल करंसी लाने का एक्सपेरिमेंट कर रहे हैं और चीन ई-युआव के जरिए इस रेस में सबसे आगे है। हालांकि, आगे का रास्ता और चुनौती भरा हो सकता है, क्योंकि सवाल ये उठता है कि आखिर किस डिजिटल करंसी को डॉलर की तरह एक माध्यम के तौर पर चुना जाएगा, ताकि ग्लोबल ट्रेड किए जा सकें। सेंट्रल बैंक ऑफ हांगकांग और थाईलैंड एक ज्वाइंट वेंचर इथेनॉन-लियॉनरॉक प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है, ताकि सेटलमेंट सिस्टम के लिएक ब्लॉकचेन तकनीक बनाई जा सके। वहीं बहुत ही कम देश ऐसे होंगे जो डॉलर के उस विकल्प वाले सेटलमेंट सिस्टम का हिस्सा बनना चाहेंगे, जिस पर चीन का सबसे अधिक प्रभाव हो। अमेरिका के रिस्क से निकल कर चीन के रिस्क में जाना मतलब कुएं से खाई में जाने जैसा हो सकता है।

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लंदन फॉरेक्स रश सिस्टम

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Russia Dollar Reserves Freeze: रूस के डॉलर रिजर्व पर लगे बैन ने उठाया बड़ा सवाल, जानिए क्यों ये फैसला हर देश को टेंशन दे रहा है!

Russia Dollar Reserves Freez: हर देश की करंसी अलग-अलग होती है, लेकिन दुनिया में ट्रेड करने के लिए किसी एक करंसी की जरूरत थी, जो डॉलर से पूरी होती है। यह वजह है कि हर देश डॉलर में फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व रखता है, ताकि ग्लोबल ट्रेडिंग की जा सके। अमेरिका ने रूस के डॉलर रिजर्व को फ्रीज कर दिया है, जो ये सवाल उठाता है कि अब किस देश का नंबर लगेगा? ऐसे में जरूरत है कि अब ग्लोबल ट्रेडिंग के लिए डॉलर के किसी विकल्प की तलाश की जाए।

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हाइलाइट्स

  • हर देश की करंसी अलग-अलग होती है, लेकिन दुनिया में ट्रेड करने के लिए किसी एक करंसी की जरूरत थी, जो डॉलर से पूरी होती है
  • यह वजह है कि हर देश डॉलर में फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व रखता है, ताकि ग्लोबल ट्रेडिंग की जा सके
  • अमेरिका ने रूस के डॉलर रिजर्व को फ्रीज कर दिया है, जो ये सवाल उठाता है कि अब किस देश का नंबर लगेगा?
  • ऐसे में जरूरत है कि अब ग्लोबल ट्रेडिंग के लिए डॉलर के किसी विकल्प की तलाश की जाए

बिटकॉइन नहीं ले सकता है डॉलर की जगह
अब एक बड़ा सवाल है कि क्या डॉलर की जगह बिटकॉइन ले सकता है? वैसे तो बिटकॉइन जैसी क्रिप्टोकरंसी से बहुत सारे ट्रांजेक्शन आसान हो सकते हैं, लेकिन इसे किसी देश की तरफ से जारी नहीं किया जाता तो ऐसे में यह डॉलर की जगह नहीं ले सकता है। बिटकॉइन को बिना किसी बैंकिंग सिस्टम के ही इलेक्ट्रॉनिक तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है और ट्रांजेक्शन की जा सकती हैं। वहीं अधिकतर क्रिप्टोकरंसी में भारी उतार-चढ़ाव आता है। ऐसे में अगर कोई देश इस माध्यम में फॉरेक्स रखता है तो उसे भारी नुकसान उठाना लंदन फॉरेक्स रश सिस्टम पड़ सकता है। एक ग्लोबल क्रॉस बॉर्डर पेमेंट्स फर्म रिपल (Ripple) के अनुसार हर मिनट करीब 2 लाख डॉलर की ट्रांजेक्शन बिटकॉइन से रूबल में की जाती हैं।

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डिजिटल करंसी हो सकता है विकल्प?
डॉलर के एक विकल्प की तरह सीबीडीसी यानी सेंट्रल बैंक डिजिटल करंसी को देखा जा सकता है। हालांकि, इसमें चीन एक रिस्क की तरह उभर कर सामने आ सकता है। भारत समेत कुछ देश डिजिटल करंसी लाने का एक्सपेरिमेंट कर रहे हैं और चीन ई-युआव के जरिए इस रेस में सबसे आगे है। हालांकि, आगे का रास्ता और चुनौती भरा हो सकता है, क्योंकि सवाल ये उठता है कि आखिर किस डिजिटल करंसी को डॉलर की तरह एक माध्यम के तौर पर चुना जाएगा, ताकि ग्लोबल ट्रेड किए जा सकें। सेंट्रल बैंक ऑफ हांगकांग और थाईलैंड एक ज्वाइंट वेंचर इथेनॉन-लियॉनरॉक प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है, ताकि सेटलमेंट सिस्टम के लिएक ब्लॉकचेन तकनीक बनाई जा सके। वहीं बहुत ही कम देश ऐसे होंगे जो डॉलर के उस विकल्प वाले सेटलमेंट सिस्टम का हिस्सा बनना चाहेंगे, जिस पर चीन का सबसे अधिक प्रभाव हो। अमेरिका के रिस्क से निकल कर चीन के रिस्क में जाना मतलब कुएं से खाई में जाने जैसा हो सकता है।

करंसी का बास्केट हो सकता है विकल्प
अगर देखा जाए तो कई देशों की करंसी का एक बास्केट इस समस्या का समाधान हो सकता है। ऐसा सिस्टम बनाने के लिए कई देशों को साथ आना होगा और मल्टीलेट्रल सेटअप बनाना होगा, जैसे आज के वक्त में ग्लोबल ट्रेड रूल्स के लिए डब्ल्यूटीओ यानी विश्व व्यापार संगठन है। हाल में हुई घटनाओं से दुनिया डॉलर में फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व रखने को लेकर थोड़ी चिंतित हुई है और अब एक नए फाइनेंशियल सिस्टम पर काम करने की जरूरत है, जिसके जरिए ग्लोबल ट्रेडिंग आसान हो सके।

(लेखक ASK Wealth Advisors के मैनेजिंग पार्टनर और सीआईओ हैं। यह विचार निजी हैं।)

विदेशी मुद्रा भंडार से गायब हो रहा डॉलर, अब किसी टैंक या मिसाइल से कम नहीं है करेंसी

RBI के गवर्नर शक्तिकांत दास (Shaktikanta Das) ने कहा है कि हमारा रिजर्व (Forex Reserve) कई करेंसीज में बंटा हुआ है, बेशक उसमें अधिकांश हिस्सेदारी डॉलर की है। सक्षम और अच्छी फंक्शनिंग वाले मार्केट्स के लिए अमेरिकी डॉलर का दबदबा लंबे वक्त से है। आईएमएफ की एक रिपोर्ट कहती है कि केन्द्रीय बैंकों के रिजर्व में अमेरिकी डॉलर की हिस्सेदारी घटी है।

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हाइलाइट्स

  • करेंसीज को हथियार के तौर पर किया जा रहा इस्तेमाल
  • Forex Reserve को डायवर्सिफाई करने पर राष्ट्र गंभीर
  • केन्द्रीय बैंकों के रिजर्व में अमेरिकी डॉलर की हिस्सेदारी घटी

अभी डॉलर के वर्चस्व को चुनौती देना संभव नहीं
कहा जा रहा है कि अमेरिकी डॉलर के दबदबे और इसे एक हथियार की तरह इस्तेमाल कर लिए जाने को देखते हुए दुनिया के विभिन्न देश ट्रांजेक्शन के ऐसे नए मैकेनिज्म तलाश सकते हैं, जो अमेरिकी डॉलर को बाईपास करें। ऐसी चर्चा है कि चीनी युआन एक संभवित लंदन फॉरेक्स रश सिस्टम रिप्लेसमेंट हो सकता है। सउदी अरब, चीन के साथ बातचीत कर रहा है कि वह तेल बिक्री के बदले युआन में पेमेंट ले सके। ये बदलाव और करेंसीज को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने की राह ने डॉलर के वर्चस्व को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है अभी डॉलर के वर्चस्व को चुनौती देना संभव नहीं है।

आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का कहना है कि अमेरिका के हालिया एक्शंस के बावजूद, अमेरिकी डॉलर का दबदबा कायम रहेगा। युआन को करेंसी ग्रुपिंग का केन्द्र बनने के लिए एक लंबा रास्ता तय करना होगा। यह स्वतंत्र रूप से कन्वर्टिबल नहीं है, इसकी वैल्यू बाजार निर्धारित नहीं है। साथ ही इस पर मैनिपुलेशन के चार्जेस हैं। यही मामला रूस के रूबल के साथ भी है। छोटे करेंसी ग्रुप्स जल्द क्रिएट होंगे, ऐसी संभावना नजर आती है। लंदन फॉरेक्स रश सिस्टम राजन का यह भी कहना है कि करेंसी को हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाना, रिजर्व रखने वाले केन्द्रीय बैंकों को अधिक करेंसी डायवर्सिटी की ओर ले जा सकता है।

1999 से 2021 तक फॉरेक्स रिजर्व में कितना घट गया डॉलर

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गैर परंपरागत करेंसीज का उदय
आईएमएफ की एक रिपोर्ट कहती है कि केन्द्रीय बैंकों के रिजर्व में अमेरिकी डॉलर की हिस्सेदारी घटी है। वहीं दूसरी ओर गैर परंपरागत रिजर्व करेंसीज जैसे ऑस्ट्रेलियाई डॉलर और चीनी युआन की हिस्सेदारी, अन्य परंपरागत रिजर्व करेंसीज जैसे यूरो, पाउंड और येन के मुकाबले बढ़ी है। यह शिफ्ट व्यापक रूप से है। 46 एक्टिव डायवर्सिफायर्स ऐसे हैं, जिनके रिजर्व का कम से कम 5 फीसदी अब गैर परंपरागत करेंसीज में है। गैर परंपरागत रिजर्व करेंसीज से अर्थ उन देशों की मुद्राओं से है, जिनका कोई इकनॉमिक स्केल और क्रॉस बॉर्डर ट्रांजेक्शन वॉल्यूम नहीं है, जो परंपरागत रिजर्व करेंसी इश्युअर्स को प्रतिष्ठित बनाए।

डिजिटल करेंसीज का उदय और वर्चस्व
सक्षम और अच्छी फंक्शनिंग वाले मार्केट्स के लिए अमेरिकी डॉलर का दबदबा लंबे वक्त से है। इसकी कई वजह हैं, जैसे मजबूत लोकतंत्र, सेफ हैवन स्टेटस, आसान वैश्विक स्वीकार्यता; फॉरेक्स ट्रेडिंग, ग्लोबल पेमेंट्स, ट्रेड व फाइनेंस में इस्तेमाल लंदन फॉरेक्स रश सिस्टम की आसानी। चीन के आर्थिक रूप से कामयाब होने के बावजूद इसकी करेंसी को डॉलर जैसा विश्वास कायम करने में सालों लग जाएंगे। यह फुली कन्वर्टिबल नहीं है और कोविड19 महामारी के बाद चीन को लेकर काफी अविश्वास है।

भले ही डॉलर के वर्चस्व को अभी चुनौती न दी जा सके लेकिन हाल की कुछ स्टडीज डिजिटल पेमेंट्स के विकास को दर्शाती हैं। साथ ही यह भी बताती हैं कि इस सेगमेंट में चीन का अग्रणी होना आगे चलकर अमेरिकी डॉलर के लिए खतरा पैदा कर सकता है। हार्वर्ड कैनेडी स्कूल के बेलफेर सेंटर फॉर साइंस एंड इंटरनेशनल अफेयर्स की एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि डिजिटल युआन ट्रडर्स को ट्रांजेक्शन रिरूट करने के एक आसान तरीके की पेशकश कर सकता है और डॉलर बेस्ड सिस्टम को बाईपास कर सकता है। यह भी संभावना है कि चीन की टेक्नोलॉजीस को इंटरनेशनली अपना लिया जाए और यह पूरी दुनिया में डिजिटल फाइनेंशियल प्रैक्टिसेज के नियम बता रहा हो।

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