महामारी, क्‍लामेट चेंज और युद्ध जैसे संकटों के कारण दुनिया भर के 90 प्रतिशत देश इस गिरावट का सामना कर रहे हैं. निश्चित रूप से, महामारी एक कारण है और उन संकटों में से एक है जिसका हम अभी सामना कर रहे हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन को देखें और पाकिस्तान में क्या हो रहा है जहां एक तिहाई आबादी विस्थापित है, इन पर भी ध्‍यान देना जरूरी है. रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध चल रहा है. संकट की गति अभूतपूर्व है और हम, मनुष्य के रूप में, एक के बाद एक संकट को हल करने में सक्षम नहीं हैं क्योंकि यह ज्‍यादा हो रहा है.

मानव विकास सूचकांक के मामले में श्रीलंका और मालदीव से पीछे भारत

India Development Reuters

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार , संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की ओर से जारी रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है. पिछली बार भारत इस सूची में 130वें नंबर पर था.

भारत का एचडीआई का मूल्यांक फिलहाल 0.624 है. यह आंकड़ा भारत को ‘मध्यम मानव विकास’ की श्रेणी डाल देता है. इस श्रेणी में कांगो, पाकिस्तान और नामीबिया जैसे देश भी हैं.

सार्क देशों में भारत तीसरे स्थान पर है लेकिन मानव विकास सूचकांक के मामले में श्रीलंका और मालदीव की स्थिति बेहतर है. इस सूची में श्रीलंका 73वें और मालदीव 105वें स्थान पर है. इन दोनों देशों को इस सूची में ‘उच्च मानव विकास’ श्रेणी में रखा गया है.

इस सूची में नॉवे (0.949) पहले, आॅस्ट्रेलिया (0.939) दूसरे और स्विटज़रलैंड (0.939) तीसरे स्थान पर है.

मानव विकास के तीन महत्वपूर्ण आयामों के आधार पर यह सूची तैयार की जाती है. ये आयाम हैं- लंबी और स्वस्थ ज़िंदगी, ज्ञान तक पहुंच और बेहतर जीवनशैली तक पहुंच.

रिपोर्ट के अनुसार मानव विकास सूचकांक में वैश्विक स्तर पर महिलाओं की स्थिति पुरुषों की तुलना में ख़राब है. दक्षिण एशिया में महिलाओं का मानव विकास सूचकांक पुरुषों की तुलना में 20 प्रतिशत कम है. हालांकि मध्यम मानव विकास श्रेणी के मामले में 1990 से साल 2015 के बीच भारत के विकास की दर इस श्रेणी में शुमार दूसरे देशों की तुलना में अच्छी रही.


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मानव विकास सूचकांक 2022: भारत में यूएनडीपी की रेजिडेंट प्रतिनिधि शोको नोडा ने कहा, पब्लिक हेल्‍थ में अधिक इन्‍वेस्‍टमेंट है जरूरी

Human Development Index 2022: More Investment In Public Health Is Critical, Says Shoko Noda, UNDP Resident Representative In India

नई दिल्ली: गुरुवार (8 सितंबर) को जारी मानव विकास रिपोर्ट 2021/2022 में भारत 191 देशों और क्षेत्रों में से 132वें स्थान पर है. नवीनतम मानव विकास रिपोर्ट, अनसर्टेन टाइम्स, अनसेटल्ड लाइव्स: शेपिंग अवर फ्यूचर इन ए ट्रांसफॉर्मिंग वर्ल्ड के अनुसार, भारत की एचडीआई वैल्‍यू 0.633 है जो देश को मीडियम ह्यूमन डेवलपमेंट कैटेगरी में रखती है, जो 2020 की रिपोर्ट में 0.645 के मूल्य से कम है. मानव विकास सूचकांक (HDI) में भारत 189 देशों में 131वें स्थान पर है.

भारत के पड़ोसी देशों में श्रीलंका (73), चीन (79), बांग्लादेश (129) और भूटान (127) ने भारत से बेहतर प्रदर्शन किया है. केवल पाकिस्तान (161), म्यांमार (149) और नेपाल (143) की स्थिति बदतर थी.

मानव विकास सूचकांक 2021/2022 पर भारत की स्थिति को समझने के लिए, NDTV ने विशेष रूप से भारत में UNDP की रेजिडेंट प्रतिनिधि, शोको नोडा से बात की. भारत की गिरती रैंक के बारे में बात करते हुए, नोडा ने कहा,

रैंकों की तुलना करना हमेशा सटीक नहीं होता है. उदाहरण के लिए, देशों की संख्या 189 से 191 हो गई है. इसलिए, यह वास्तव में रैंकिंग के बारे में नहीं है बल्कि मानव विकास मूल्यों को स्वयं और उनकी प्रवृत्तियों को देखना बहुत महत्वपूर्ण है. ये मूल्य बहुत अधिक सटीक कहानियां बताएंगे.

एचडीआई मानव विकास के तीन प्रमुख आयामों पर प्रगति को मापता है – एक लंबा और स्वस्थ जीवन, शिक्षा तक पहुंच और एक सभ्य जीवन स्तर. एचडीआई की गणना चार संकेतकों – जन्म के समय जीवन प्रत्याशा, स्कूली शिक्षा के औसत वर्ष, स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष और प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (जीएनआई) का उपयोग करके की जाती है. चार मापदंडों में से प्रत्येक पर क्या संकेतक बेहतर है? भारत की स्थिति के बारे में बात करते हुए, नोडा ने कहा,

भारत ने तीन मापदंडों पर गिरावट की है और एक पर सुधार किया है. सबसे पहले, स्वास्थ्य में, जीवन प्रत्याशा 69.7 से गिरकर 67.2 वर्ष हो गई है एजुकेशनल साइड के लिए, दो इंडिकेटर हैं, स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्षों में गिरावट है, लेकिन स्कूली शिक्षा के औसत वर्षों में वृद्धि देखी गई है. यह गिरावट महामारी के दौरान स्कूल बंद होने के कारण है. अंत में, जीवन स्तर; यहीं पर प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (GNI) आती है और भारत के लिए यह $6,681 से गिरकर $6,590 हो गई है.

नोडा ने कहा कि भारत अकेला ऐसा देश नहीं है जो गिरावट का सामना कर रहा है. उन्‍होंने कहा,

महामारी, क्‍लामेट चेंज और युद्ध जैसे संकटों के कारण दुनिया भर के 90 प्रतिशत देश इस गिरावट का सामना कर रहे हैं. निश्चित रूप से, महामारी एक कारण है और उन संकटों में से एक है जिसका हम अभी सामना कर रहे हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन को देखें और पाकिस्तान में क्या हो रहा है जहां एक तिहाई आबादी विस्थापित है, इन पर भी ध्‍यान देना जरूरी है. रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध चल रहा है. संकट की गति अभूतपूर्व है और हम, मनुष्य के रूप में, एक के बाद एक संकट को हल करने में सक्षम नहीं हैं क्योंकि यह ज्‍यादा हो रहा है.

उन क्षेत्रों के बारे में पूछे जाने पर जहां भारत को मानव विकास में सुधार के लिए काम करने की आवश्यकता है, नोडा ने जेंडर पर जोर दिया. मेल और फीमेल के बीच की खाई को पाटने के लिए भारत सरकार की तारीफ करते हुए, नोडा ने कहा,

सबसे पहले, खाई को कम किया जा रहा है और दूसरी बात यह है कि दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में इसे तेजी से कम किया जा रहा है. ये अच्छी खबर है. लेकिन निश्चित रूप से चुनौतियां बनी हुई हैं, और इस देश में दुनिया में सबसे कम महिला श्रम शक्ति भागीदारी है. जेंडर-रेस्पोंसिव पॉलिसी और समस्याएं पहले से ही मौजूद हैं, लेकिन मुझे लगता है कि महिला सशक्तिकरण से परे और अधिक किए जाने की आवश्यकता है. असमानता को कम करने के लिए सामाजिक सुरक्षा भी विस्तार और मजबूती के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और मौजूदा सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के मजबूत कार्यान्वयन के लिए न केवल महिलाओं को बल्कि अन्य कमजोर समूहों को भी शामिल करना महत्वपूर्ण है. तीसरा, शिक्षा और आय जैसे अन्य मानव विकास संकेतकों में सुधार के लिए हमारे पास स्वस्थ आबादी होनी चाहिए. पब्लिब हेल्‍थ में अधिक निवेश महत्वपूर्ण है.

COVID-19 महामारी ने दुनिया को दिखा दिया है कि पब्लिक हेल्‍थ में इन्वेस्टमेंट क्यों जरूरी है.

अपनी बात खत्‍म करते समय, नोडा ने भारत के विकास के बारे में भी बात की और कहा कि देश ने 2005 और 2016 के बीच बहुआयामी गरीबी से 270 मिलियन लोगों को निकाला है. हालांकि, यह ऊपर की प्रवृत्ति भी प्रभावित हुई है.

सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में संकेतक का क्या है महत्व? कक्षा शिक्षण में संकेतकों का प्रयोग किस प्रकार करेंगे?


यह शिक्षक के लिए चुनौतीपूर्ण स्थिति उत्पन्न करती है जिसमें यह आवश्यक है कि शिक्षक स्वयं अपने कक्षा कक्ष की स्थितियों के अनुसार संकेतक का प्रयोग करे। सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में संकेतक एक महत्वपूर्ण कड़ी है। संकेतक ही वह आधार है जिसके माध्यम से बच्चों से सम्बन्धित क्षेत्र में दक्षता का सुव्यवस्थित विकास किया जाता है। संकेतक का प्रयोग करते समय निम्नलिखित बाते आवश्यक हैं-

मानव विकास सूचकांक में और पीछे भारत; स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवनस्तर बुरी तरह प्रभावित

human development

भारतीय अर्थव्यवस्था को सरकार भले ही 5 ट्रिलियन इकोनॉमी बनाने के सपने लोगों को दिखा रही हो लेकिन संयुक्त राष्ट्र की मानें तो लोगों का औसत जीवन स्तर बेहतर नहीं हुआ है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने 191 देशों के सर्वेक्षण के आधार पर मानव विकास सूचकांक जारी किया है। इस इंडेक्स में भारत को कुल 0.633 अंक दिए गए हैं जो भारत को मध्यम मानव विकास वाले देशों की श्रेणी में रखता है। वहीं 2019 में भारत को कुल 0.645 अंक दिए गए थे। यह गिरावट स्पष्ट तौर पर दर्शाती है कि कोरोना महामारी ने देश में लोगों के स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवनस्तर को बुरी तरह प्रभावित किया है। यहां ग़ौर करने वाली बात ये है कि भारत इससे पहले साल 2021 में 131वें स्थान पर था लेकिन इस साल वह एक पायदान और नीचे फिसल कर 132 वें स्थान पर चला गया है।

बता दें कि इस सूचकांक में सिर्फ़ किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का सहारा नहीं लिया जाता बल्कि औसत जीवन स्तर निकालने के लिए ग़रीबी, साक्षरता और लिंग आधारित मानकों को आधार बनाया जाता है। मानव विकास सूचकांक के मामले में पड़ोसी देशों चीन, श्रीलंका, भूटान और बांग्लादेश ने भी भारत को पीछे छोड़ दिया। सूचकांक में श्रीलंका को 73वां रैंक मिला है। इसी के साथ चीन को 79वां, भूटान को 127वां, बांग्लादेश को 129वां स्थान मिला है।

भारत में औसत जीवन स्तर क्यों गिरता जा रहा है?

रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक दशक से लोगों में तनाव, उदासी, गुस्सा और चिंता बढ़ रही है, जो अब रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। ऐसे में अनिश्चितता से भरी इस दुनिया में हमें एक दूसरे से जुड़ी इन चुनौतियों से निपटने के लिए हमें वैश्विक एकजुटता की भावना की जरुरत है।

भारत में यूएनडीपी के प्रतिनिधि शोको नोडा का इस बारे में कहना है कि वैश्विक स्तर पर मानव विकास में हो रही प्रगति पलट गई है, भारत भी गिरावट की इसी प्रवृत्ति को दर्शाता है। रिपोर्ट के मुताबिक लगातार पिछले दो वर्षों में वैश्विक स्तर पर लोगों के स्वास्थ्य, शिक्षा, आय और जीवन स्तर में गिरावट आई है, जिससे भारत भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है। देखा जाए तो मानव विकास में हो रही प्रगति पांच वर्षों की गिरावट के साथ 2016 के स्तर पर वापस आ गई है। लेकिन इन सबके बीच थोड़ी राहत की बात भी है कि ये आंकड़े दर्शाते हैं कि 2019 की तुलना में मानव विकास में व्याप्त असमानता का प्रभाव कम हुआ है।

हालांकि मानव विकास सूचकांक, मानव विकास के जिन तीन प्रमुख आयामों स्वस्थ और लंबा जीवन, शिक्षा तक पहुंच और जीवन गुणवत्ता को मापता है। इनकी गणना चार प्रमुख संकेतकों जीवन प्रत्याशा, औसत स्कूली शिक्षा, स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष और प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय पर आधारित है और इन तीन प्रमुख आयामों को देखें तो मानव विकास सूचकांक में आई हालिया गिरावट में जीवन प्रत्याशा का बहुत बड़ा हाथ रहा। आंकड़ों के अनुसार जहां वैश्विक स्तर पर 2019 में एक व्यक्ति की औसत आयु 72.8 वर्ष थी वो 2021 में 1.4 वर्षों की गिरावट के साथ घटकर 71.4 वर्ष रह गई है।

जीवन प्रत्याशा के मामले में जो रुझान वैश्विक स्तर पर सामने आए हैं, उन्हें भारत से जुड़े आंकड़ों में भी स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है। जहां 2019 में देश में प्रति व्यक्ति औसत जीवन प्रत्याशा 69.7 थी वो 2021 में 2.5 वर्षों की गिरावट के साथ 67.2 वर्ष रह गई थी। इसी तरह भारत में स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष 11.9 वर्ष हैं, और स्कूली शिक्षा के औसत वर्ष 6.7 हैं। वहीं यदि देश में प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय को देखें तो वो करीब 6,590 डॉलर है।

मालूम हो कि दुनिया के अन्य देशों की बात करें तो इस साल ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स में स्विटज़रलैंड को कुल 0.962 अंकों के साथ पहले स्थान पर जगह दी गई है। जहां औसत जीवन प्रत्याशा 84 वर्ष है। वहीं यदि शिक्षा की बात करें तो वहां व्यक्ति औसतन 13.9 वर्ष शिक्षा ग्रहण करता है जबकि स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष 16.5 वर्ष हैं। इसी तरह वहां एक औसत व्यक्ति की सकल राष्ट्रीय आय 66,933 डॉलर है। वहीं इसके विपरीत इस इंडेक्स में दक्षिण सूडान को सबसे निचले 191वें पायदान पर जगा दी गई है। देखा जाए तो दक्षिण सूडान में औसत जीवन प्रत्याशा 55 वर्ष है, जबकि एक औसत व्यक्ति की सकल राष्ट्रीय आय केवल 768 डॉलर है। इसी तरह दक्षिण सूडान में एक औसत बच्चा 5.7 वर्ष स्कूल जाता है।

सतत विकास के लक्ष्यों में भारत काफी पीछे

गौरतलब है कि क्या संकेतक बेहतर है? इस साल मार्च के महीने में एनुअल स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट 2022 रिपोर्ट सामने आई थी, जिसमें कहा गया था कि सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने में भारत फिलहाल काफी पीछे है। ऐसे कम से कम 17 प्रमुख सरकारी लक्ष्य हैं, जिनकी समय-सीमा 2022 है और धीमी गति के चलते अब इन्हें हासिल नहीं किया जा सकता है। एक मार्च को जारी इस रिपोर्ट के मुताबिक सतत विकास लक्ष्यों (एसीडीजी) को हासिल करने में भारत पिछले दो सालों में तीन पायदान नीचे खिसका है। यह रिपोर्ट डाउन टू अर्थ मैगजीन का सालाना प्रकाशन थी और इसे केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) द्वारा पत्रकारों के लिए आयोजित नेशनल कॉन्क्लेव, अनिल अग्रवाल डायलॉग (एएडी), 2022 में जारी किया था।

बहरहाल, पीएम मोदी को वोट देने पर 'शक्तिशाली नेता और उनकी मज़बूत सरकार' का दंभ दिखाने वाली बीजेपी अपने वादे और ज़मीनी हक़ीकत से कोसो दूर नज़र आती है। उनकी घोषणाएं ज़रूरत से ज़्यादा बढ़ा चढ़ा कर पेश की जाती हैं और सच्चाई प्रचार की गूंजती आवाज़ों तले दब जाती है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस ने 2014 और फिर 2019 के आम चुनावों में शानदार जीत हासिल कर सरकार का गठन किया। सरकार बनते ही विकास के कई वादे और घोषणाएं हुईं। कई सतत विकास के सरकारी लक्ष्यों का सरकार ने ज़ोर-शोर से प्रमोशन किया, इनकी समय सीमा 2022 रखी गई। हालांकि अब जब हम 2022 के सितंबर में कदम रख चुके हैं तो इन योजनाओं के पूरा होने का इंतज़ार अभी भी कर रहे हैं। जाहिर है इससे सरकार के दावों की पोल खुलती नज़र आ रही है और देश में 'सबके साथ, सबके विकास' की सच्चाई भी साफ-साफ दिखाई दे रही है।

मानव विकास सूचकांक में और पीछे भारत; स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवनस्तर बुरी तरह प्रभावित

human development

भारतीय अर्थव्यवस्था को सरकार भले ही 5 ट्रिलियन इकोनॉमी बनाने के सपने लोगों को दिखा रही हो लेकिन संयुक्त राष्ट्र की मानें तो लोगों का औसत जीवन स्तर बेहतर नहीं हुआ है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने 191 देशों के सर्वेक्षण के आधार पर मानव विकास सूचकांक जारी किया है। इस इंडेक्स में भारत को कुल 0.633 अंक दिए गए हैं जो भारत को मध्यम मानव विकास वाले देशों की श्रेणी में रखता है। वहीं 2019 में भारत को कुल 0.645 अंक दिए गए थे। यह गिरावट स्पष्ट तौर पर दर्शाती है कि कोरोना महामारी ने देश में लोगों के स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवनस्तर को बुरी तरह प्रभावित किया है। यहां ग़ौर करने वाली बात ये है कि भारत इससे पहले साल 2021 में 131वें स्थान पर था लेकिन इस साल वह एक पायदान और नीचे फिसल कर 132 वें स्थान पर चला गया है।

बता दें कि इस सूचकांक में सिर्फ़ किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का सहारा नहीं लिया जाता बल्कि औसत जीवन स्तर निकालने के लिए ग़रीबी, साक्षरता और लिंग आधारित मानकों को आधार बनाया जाता है। मानव विकास सूचकांक के मामले में पड़ोसी देशों चीन, श्रीलंका, भूटान और बांग्लादेश ने भी भारत को पीछे छोड़ दिया। सूचकांक में श्रीलंका को 73वां रैंक मिला है। इसी के साथ चीन को 79वां, भूटान को 127वां, बांग्लादेश को 129वां स्थान मिला है।

भारत में औसत जीवन स्तर क्यों गिरता जा रहा है?

रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक दशक से लोगों में तनाव, उदासी, गुस्सा और चिंता बढ़ रही है, जो अब रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। ऐसे में अनिश्चितता से भरी इस दुनिया में हमें एक दूसरे से जुड़ी इन चुनौतियों से निपटने के लिए हमें वैश्विक एकजुटता की भावना की जरुरत है।

भारत में यूएनडीपी के प्रतिनिधि शोको नोडा का इस बारे में कहना है कि क्या संकेतक बेहतर है? वैश्विक स्तर पर मानव विकास में हो रही प्रगति पलट गई है, भारत भी गिरावट की इसी प्रवृत्ति को दर्शाता है। रिपोर्ट के मुताबिक लगातार पिछले दो वर्षों में वैश्विक स्तर पर लोगों के स्वास्थ्य, शिक्षा, आय और जीवन स्तर में गिरावट आई है, जिससे भारत भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है। देखा जाए तो मानव विकास में हो रही प्रगति पांच वर्षों की गिरावट के साथ 2016 के स्तर पर वापस आ गई है। लेकिन इन सबके बीच थोड़ी राहत की बात भी है कि ये आंकड़े दर्शाते हैं कि 2019 की तुलना में मानव विकास में व्याप्त असमानता का प्रभाव कम हुआ है।

हालांकि मानव विकास सूचकांक, मानव विकास के जिन तीन प्रमुख आयामों स्वस्थ और लंबा जीवन, शिक्षा तक पहुंच और जीवन गुणवत्ता को मापता है। इनकी गणना चार प्रमुख संकेतकों जीवन प्रत्याशा, औसत स्कूली शिक्षा, स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष और प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय पर आधारित है और इन तीन प्रमुख आयामों को देखें तो मानव विकास सूचकांक में आई हालिया गिरावट में जीवन प्रत्याशा का बहुत बड़ा हाथ रहा। आंकड़ों के अनुसार जहां वैश्विक स्तर पर 2019 में एक व्यक्ति की औसत आयु 72.8 वर्ष थी वो 2021 में 1.4 वर्षों की गिरावट के साथ घटकर 71.4 वर्ष रह गई है।

जीवन प्रत्याशा के मामले में जो रुझान वैश्विक स्तर पर सामने आए हैं, उन्हें भारत से जुड़े आंकड़ों में भी स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है। जहां 2019 में देश में प्रति व्यक्ति औसत जीवन प्रत्याशा 69.7 थी वो 2021 में 2.5 वर्षों की गिरावट के साथ 67.2 वर्ष रह गई थी। इसी तरह भारत में स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष 11.9 वर्ष हैं, और स्कूली शिक्षा के औसत वर्ष 6.7 हैं। वहीं यदि देश में प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय को देखें तो वो करीब 6,590 डॉलर है।

मालूम हो कि दुनिया के अन्य देशों की बात करें तो इस साल ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स में स्विटज़रलैंड को कुल 0.962 अंकों के साथ पहले स्थान पर जगह दी गई है। जहां औसत जीवन प्रत्याशा 84 वर्ष है। वहीं यदि शिक्षा की बात करें तो वहां व्यक्ति औसतन 13.9 वर्ष शिक्षा ग्रहण करता है जबकि स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष 16.5 वर्ष हैं। इसी तरह वहां एक औसत व्यक्ति की सकल राष्ट्रीय आय 66,933 डॉलर है। वहीं इसके विपरीत इस इंडेक्स में दक्षिण सूडान को सबसे निचले 191वें पायदान पर जगा दी गई है। देखा जाए तो दक्षिण सूडान में औसत जीवन प्रत्याशा 55 वर्ष है, जबकि एक औसत व्यक्ति की सकल राष्ट्रीय आय केवल 768 डॉलर है। इसी तरह दक्षिण सूडान में एक औसत बच्चा 5.7 वर्ष स्कूल जाता है।

सतत विकास के लक्ष्यों में भारत काफी पीछे

गौरतलब है कि इस साल मार्च के महीने में एनुअल स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट 2022 रिपोर्ट सामने आई थी, जिसमें कहा गया था कि सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने में भारत फिलहाल काफी पीछे है। ऐसे कम से कम 17 प्रमुख सरकारी लक्ष्य हैं, जिनकी समय-सीमा 2022 है और धीमी गति के चलते अब इन्हें हासिल नहीं किया जा सकता है। एक मार्च को जारी इस रिपोर्ट के मुताबिक सतत विकास लक्ष्यों (एसीडीजी) को हासिल करने में भारत पिछले दो सालों में तीन पायदान नीचे खिसका है। यह रिपोर्ट डाउन टू अर्थ मैगजीन का सालाना प्रकाशन थी और इसे केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) द्वारा पत्रकारों के लिए आयोजित नेशनल कॉन्क्लेव, अनिल अग्रवाल डायलॉग (एएडी), 2022 में जारी किया था।

बहरहाल, पीएम मोदी को वोट देने पर 'शक्तिशाली नेता और उनकी मज़बूत सरकार' का दंभ दिखाने वाली बीजेपी अपने वादे और ज़मीनी हक़ीकत से कोसो दूर नज़र आती है। उनकी घोषणाएं ज़रूरत से ज़्यादा बढ़ा चढ़ा कर पेश की जाती हैं और सच्चाई प्रचार की गूंजती आवाज़ों तले दब जाती है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस ने 2014 और फिर 2019 के आम चुनावों में शानदार जीत हासिल कर सरकार का गठन किया। सरकार बनते ही विकास के कई वादे और घोषणाएं हुईं। कई सतत विकास के सरकारी लक्ष्यों का सरकार ने ज़ोर-शोर से प्रमोशन किया, इनकी समय सीमा 2022 रखी गई। हालांकि अब जब हम 2022 के सितंबर में कदम रख चुके हैं तो इन योजनाओं के पूरा होने का इंतज़ार अभी भी कर रहे हैं। जाहिर है इससे सरकार के दावों की पोल खुलती नज़र आ रही है और देश में 'सबके साथ, सबके विकास' की सच्चाई भी साफ-साफ दिखाई दे रही है।

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