प्रो. वक के अनुसार, "मुद्रा के प्रयोग के बिना किया जाने वाला प्रत्यक्ष विनिमय ही वस्तु-विनिमय कहलाता है।"

वस्तु विनिमय प्रणाली की प्रमुख समस्याएँ क्या थीं ? ꘡ मुद्रा के अविष्कार ने वस्तु विनिमय की कठिनाइयों को कैसे दूर किया ?

आप सभी अच्छी तरह जानते हैं कि मानव जीवन के लिए मुद्रा अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यानि की हम यह मान सकते हैं कि किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए मुद्रा उतनी ही ज़रूरी है जितना कि शरीर के अंदर रक्त का संचार होना ज़रूरी है। मुद्रा के बिना किसी भी देश दोहरी विनिमय दरों की सीमाएँ के आर्थिक, सामाजिक या राजनैतिक ढाँचे की कल्पना करना ही असंभव है। मुद्रा के बिना किसी भी प्रकार के लेनदेन के बारे में सोचना भी कितना कठिन सा लगता है।

अब ज़रा सोचिए कि आर्थिक विकास के प्रारंभिक युग में लेनदेन किस प्रकार किया जाता रहा होगा। विशेषकर जब मुद्रा का अभाव था। या यूँ कहिए कि उस समय किसी भी प्रकार की मुद्रा का चलन नहीं था।

वस्तु विनिमय प्रणाली क्या है? | Vastu vinimay pranali kya hai?

जिस व्यक्ति को दोहरी विनिमय दरों की सीमाएँ किसी विशिष्ट वस्तु के उत्पादन में रुचि या प्रवीणता होती थी। वह उस वस्तु का आवश्यकता से अधिक उत्पादन कर लिया करता था। फ़िर वह उस वस्तु के बदले में किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा उत्पादित वस्तु का विनिमय कर लेता था। जिसकी उसे आवश्यकता होती थी। वस्तु विनिमय प्रणाली किसे कहते हैं? barter system meaning in hindi को सरल रूप में समझने के लिए आइये हम एक उदाहरण द्वारा समझने का प्रयास करते हैं।

वस्तु विनिमय प्रणाली की कठिनाइयाँ | वस्तु विनिमय प्रणाली की सीमाएँ | (Disadvantage of Barter System in hindi)

(1) वस्तु के विभाजन में कठिनाइयाँ - कुछ वस्तुएँ ऐसी होती हैं जिन्हें विभाजित नहीं किया जा सकता। यदि इन वस्तुओं से किसी भी वस्तु के साथ विनिमय किया जाए तो किसी एक व्यक्ति को निश्चित रूप से हानि उठानी पड़ सकती है। वस्तुओं के विभाजन करने के स्थिति में बहुत कठिनाइयाँ होती हैं। क्योंकि विभाजित करने से कुछ वस्तुओं की उपयोगिता नष्ट हो जाती है।

उन्हें विभाजित ही नहीं किया जा सकता है। जैसे- मान लिया जाए कि कोई व्यक्ति चाय, चीनी, गेहूँ और कपड़ा, ये चार वस्तुएँ एक भैंस के बदले प्राप्त करना चाहता है। परंतु उसकी आवश्यकता की उन चारों वस्तुओं के बदले एक भैंस को चार भागों में विभाजित करना असंभव होता है।

(दोहरी विनिमय दरों की सीमाएँ 2) दोहरे संयोग का अभाव - वस्तु विनिमय संभव तभी हो सकता दोहरी विनिमय दरों की सीमाएँ है जब दूसरे पक्ष को हमारी अतिरिक्त वस्तु की आवश्यकता हो। कोई व्यक्ति अपनी वस्तु देना तो चाहता है किंतु उसे हमारे पास उपलब्ध वस्तु की आवश्यकता ना हो तब ऐसी स्थिति में दोहरे संयोग की समस्या उत्पन्न हो जाती है।

मुद्रा द्वारा वस्तु-विनिमय की कठिनाइयाँ दूर करना (to remove difficulties of barter by money in hindi)

मुद्रा के आविष्कार ने वस्तु-विनिमय की कठिनाइयों को दूर कर दिया। मुद्रा के दोहरी विनिमय दरों की सीमाएँ दोहरी विनिमय दरों की सीमाएँ द्वारा ये समस्याएँ निम्न प्रकार दूर हो गईं-

(1) दोहरा संयोग - मुद्रा का आविष्कार हो जाने के कारण वस्तु के विनिमय से उत्पन्न दोहरे संयोग की समस्या से छुटकारा मिल गया। अब हम मुद्रा देकर अपनी आवश्यकता की वस्तु किसी से भी, कहीं से भी प्राप्त कर सकते हैं।

(2) मूल्य का मापन - अब हम किसी भी वस्तु का मूल्य मुद्रा के रूप में ज्ञात कर सकते हैं। मुद्रा के बदले अब आसानी से कोई भी वस्तु प्राप्त कर सकते हैं।

(4) मूल्य का संचय - मुद्रा के मूल्य में स्थिरता पायी जाती है। यह शीघ्र नष्ट नहीं होता। अर्थात यह वस्तुओं की भाँति शीघ्र नष्ट होने वाली नहीं होती। अतः इसका संचय करना संभव हो जाता है।

मुद्रा और बैंकिंग

मुद्रा के प्रमुख कार्य क्या-क्या हैं ? मुद्रा किस प्रकार वस्तु विनिमय प्रणाली की कमियों को दूर करता है ?

  1. विनिमय का माध्यम;
  2. मूल्य का मापक;
  3. भावी भुगतान का आधार;
  4. मूल्य संचय।

मुद्रा निम्नलिखित प्रकार से वस्तु-विनिमय प्रणाली की कमियों को दूर करती हैं:

विनिमय का माध्यम: मुद्रा की सर्वप्रथम भूमिका यह है कि वह मुद्रा विनिमय के माध्यम के रूप में कार्य करती है। मुद्रा विनिमय के माध्यम के रूप में विनिमय सौदों को दो भागों क्रय और विक्रय में विभाजित करती है। मुद्रा का यह कार्य आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की कठिनाई को दूर करता है। लोग अपनी वस्तुओं को मुद्रा के बदले में बेचते हैं और उससे प्राप्त राशि को अन्य वस्तुओं एवं सेवाओं के क्रय में प्रयोग करते हैं।

दोहरी विनिमय दरों की सीमाएँ

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