भारत ने तीन मापदंडों पर गिरावट की है और एक पर सुधार किया है. सबसे पहले, स्वास्थ्य में, जीवन प्रत्याशा 69.7 से गिरकर 67.2 वर्ष हो गई है एजुकेशनल साइड के लिए, दो इंडिकेटर हैं, स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्षों में गिरावट है, लेकिन स्कूली शिक्षा के औसत वर्षों में वृद्धि देखी गई है. यह गिरावट महामारी के दौरान स्कूल बंद होने के कारण है. अंत में, जीवन स्तर; यहीं पर प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (GNI) आती है और भारत के लिए यह $6,681 से गिरकर $6,590 हो गई है.
संयुक्त राष्ट्र के मानव विकास सूचकांक में भारत 131वें नंबर पर, समझिए इसके मायने
संयुक्त राष्ट्र के मानव विकास सूचकांक में भारत को 131वां स्थान मिला है। बता दें कि मानव विकास सूचकांक किसी देश में स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन के स्तर को मापता है। यूएनडीपी के रेजिडेंट प्रतिनिधि शोको नोडा ने संवाददाताओं से कहा कि भारत की रैंकिंग में गिरावट का यह अर्थ नहीं कि “भारत ने अच्छा नहीं किया, बल्कि इसका अर्थ है कि अन्य देशों ने बेहतर किया।”
हाइलाइट्स
- संयुक्त राष्ट्र के मानव विकास सूचकांक में भारत को 131वां स्थान मिला है
- मानव विकास सूचकांक किसी देश में स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन के स्तर को मापता है
- रैंकिंग में गिरावट का यह अर्थ नहीं क्या संकेतक बेहतर है कि भारत ने अच्छा नहीं किया, बल्कि इसका अर्थ है कि अन्य देशों ने बेहतर किया।
- वर्ष 2019 में भारतीयों की जीवन प्रत्याशा 69.7 साल थी
रिपोर्ट के अनुसार सूचकांक में भूटान 129वें स्थान पर, बांग्लादेश 133वें स्थान पर, नेपाल 142वें स्थान पर और पाकिस्तान 154वें स्थान पर रहा। सूचकांक में नॉर्वे सबसे ऊपर रहा और उसके बाद आयरलैंड, स्विट्जरलैंड, हांगकांग और आइसलैंड का स्थान रहा। यूएनडीपी के रेजिडेंट प्रतिनिधि शोको क्या संकेतक बेहतर है नोडा ने संवाददाताओं से कहा कि भारत की रैंकिंग में गिरावट का यह अर्थ नहीं कि “भारत ने अच्छा नहीं किया, बल्कि इसका अर्थ है कि अन्य देशों ने बेहतर किया।”
नोडा ने कहा कि भारत दूसरे देशों की मदद कर सकता है। उन्होंने भारत द्वारा कार्बन उत्सर्जन कम करने के प्रयासों की भी सराहना की। यूएनडीपी की ओर से मंगलवार को जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार क्रय शक्ति समता (पीपीपी) के आधार पर 2018 में भारत की प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय 6,829 अमेरिकी डॉलर थी जो 2019 में गिरकर 6,681 डॉलर हो गई।
मानव विकास सूचकांक के मामले में श्रीलंका और मालदीव से पीछे भारत
साल 2016 के मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) में भारत फिसलकर क्या संकेतक बेहतर है एक अंक नीचे चला गया है. 188 देशों की सूची में वह 131वें नंबर पर है. The post मानव विकास सूचकांक के मामले में श्रीलंका और मालदीव से पीछे भारत appeared first on The Wire - Hindi.
साल 2016 के मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) में भारत फिसलकर एक अंक नीचे चला गया है. 188 देशों की सूची में वह 131वें नंबर पर है.
(प्रतीकात्मक फोटो: नावेश चित्रकार/रॉयटर्स)
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार , संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की ओर से जारी रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है. पिछली बार भारत इस सूची में 130वें नंबर पर था.
भारत का एचडीआई का मूल्यांक फिलहाल 0.624 है. यह आंकड़ा भारत को ‘मध्यम मानव विकास’ की श्रेणी डाल देता है. इस श्रेणी में कांगो, पाकिस्तान और नामीबिया जैसे देश भी हैं.
सार्क देशों में भारत तीसरे स्थान पर है लेकिन मानव विकास सूचकांक के मामले में श्रीलंका और मालदीव की स्थिति बेहतर है. इस सूची में श्रीलंका 73वें और मालदीव 105वें स्थान पर है. इन दोनों देशों को इस सूची में ‘उच्च मानव विकास’ श्रेणी में रखा गया है.
इस सूची में नॉवे (0.949) पहले, आॅस्ट्रेलिया (0.939) दूसरे और स्विटज़रलैंड (0.939) तीसरे स्थान पर है.
मानव विकास के तीन महत्वपूर्ण आयामों के आधार पर यह सूची तैयार की जाती है. ये आयाम हैं- लंबी और स्वस्थ ज़िंदगी, ज्ञान तक पहुंच और बेहतर जीवनशैली तक पहुंच.
रिपोर्ट के अनुसार मानव विकास सूचकांक में वैश्विक स्तर पर महिलाओं की स्थिति पुरुषों की तुलना में ख़राब है. दक्षिण एशिया में महिलाओं का मानव विकास सूचकांक पुरुषों की तुलना में 20 प्रतिशत कम है. हालांकि मध्यम मानव विकास श्रेणी के मामले में 1990 से साल 2015 के बीच भारत के विकास की दर इस श्रेणी में शुमार दूसरे देशों की तुलना में अच्छी रही.
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एक स्कूल को बेहतर बनाने वाली कौन सी चीज़ें होती हैं? अगर इस सवाल पर ग़ौर फरमाएं तो सबसे पहले बच्चों का जिक्र आएगा कि किसी भी स्कूल को वहां के बच्चे विशिष्ट या ख़ास बनाते हैं। इसके बाद की भूमिका उनके शिक्षक और शिक्षकों का नेतृत्व करने वाले प्रधानाध्यापक की होती है।
स्कूल के समानांतर घर के माहौल की भी बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जिसमें अभिभावक एक सक्रिय भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा बच्चों की पाठ्यपुस्तकें, कक्षा का माहौल, बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षकों का पढ़ाने के प्रति जज्बा और बच्चों से लगाव भी कम महत्वपूर्ण नहीं है।
कैसा हो पढ़ाई का तरीका?
अचानक से आने वाली परिस्थिति का सामना शिक्षक किस तरह से करते हैं? यह भी एक बड़ा कौशल है क्योंकि स्कूलों में बहुत सारी चीज़ें अचानक से आती हैं। इनके कारण बच्चों की पढ़ाई और उसकी निरंतरता पर कोई असर न पड़े इसकी योजना एक अच्छे शिक्षक के पास होनी चाहिए। बच्चों को मिलने वाले निर्देश स्पष्ट होने चाहिए। ख़ास बात है कि उनको एक ही तरीके से पढ़ाया जाना चाहिए।
अगर किसी स्कूल के बच्चों को अलग-अलग शिक्षक एक ही विषय सामग्री को अलग-अलग तरीके से पढ़ाने और समझाने का प्रयास करते हैं तो उससेस दिक्कत पेश क्या संकेतक बेहतर है आती है जैसे पहली कक्षा के बच्चों को कोई शिक्षक नियमित रूप से एक योजना के मुताबिक़ अंग्रेजी का पाठ पढ़ा रहे हैं। इसके अलावा स्कूल में आने वाले पैरा टीचर भी उन बच्चों को अपने हिसाब से अंग्रेजी पढ़ा रहे हैं तो उससे भी बच्चों का तालमेल टूटता है और इसका सीधा असर उनके सीखने की गति, गुणवत्ता और भावी अनुभवों में उसके इस्तेमाल की क्षमता पर पड़ता है।
‘ख़तरे की क्या संकेतक बेहतर है घंटी’
बहुत ज़्यादा एक्सपोजर भी है ख़तरे की घंटी। जिन बच्चों को बहुत ज़्यादा समझाने की कोशिश की जाती है वे उतना ही उलझते चले जाते हैं। इसस बात को एक उदाहरण से समझने का प्रयास किया जा सकता है अगर कोई शिक्षक A लेटर के साउण्ड पर फ़ोकस करके पढ़ा है, दूसरा शिक्षक उनको चित्रों के माध्यम से A को पहचानना सिखा रहा है और तीसरा शिक्षक उनको दोनों में से क्या संकेतक बेहतर है एक तरीके से A को पहचानना और उसका उच्चारण करना सिखा रहे हैं तो ऐसी स्थिति में एक संभावना बनती है कि बच्चे वर्ण और साउण्ड के साथ-साथ चित्र और साउण्ड का कनेक्शन बैठाने में एक दुविधा वाली स्थिति का सामना कर रहे हों।
ऐसी किसी भी परिस्थिति को बनने से रोकने के लिए बेहद जरूरी है कि बच्चों को निर्देश साफ़-साफ़ दिये जाएं। उन निर्देशों की पुष्टि सही सवालों के माध्यम से करके यह जानने का प्रयास किया जाये कि बच्चा वाकई उन निर्देशों या बातचीत को समझ पा रहा है या नहीं। अगर बच्चा निर्देशों को स्पष्टता के साथ नहीं समझ पा रहा है तो निर्देश को फिर से स्पष्ट रूप से बनाने और उसे बच्चों के सामने रखने वाली प्रक्रिया पर फिर से ग़ौर करना चाहिए कि निर्देशों के निर्माण और संवाद के दौरान साझा होने वाली प्रक्रिया में कहाँ चूक हो रही है। अच्छे निर्देश देना एक कला है, जो लगातार अभ्यास से निखरती है।
बच्चों के साथ तालमेल है जरूरी
हर शिक्षक के काम करने का अपना तरीका होता है। कोई रफ़्तार के साथ काम करने का आदी होता है तो कोई धीरे-धीरे काम करना पंसद करता है। हर शिक्षक को अपनी क्षमता बढ़ाने और नई चीज़ें सीखने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहना चाहिए। इसके लिए अपने विचारों को चुनौती देना और ख़ुद को नये अनुभवों के लिए तैयार करना काफ़ी मददगार होता है। एक शिक्षक कहते हैं, “मैंने बीएड के दौरान बहुत से चार्ट पेपर का इस्तेमाल करके बच्चों के लिए सहायक शिक्षण सामग्री बनाई थी। लेकिन वास्तविक जॉब में आने के बाद वह पहले जैसा उत्साह क्या संकेतक बेहतर है नहीं रहा। उन्होंने ख़ुद से कोशिश करते हुए दूसरे साथी का मदद से अपने विचार को एक्शन में तब्दील करके बच्चों को अंग्रेजी की वर्णमाला लिखना सिखाने के लिए चार्ट पेपर बना लिया।” उनको ख़ुशी थी कि वे अपने एक विचार को वास्तविकता में ढाल पाये।
अपने विचारों को वास्तविकता में तब्दील करने वाली ख़ुशियों को संजोते रहें और सदैव इस बात का अहसास रखें कि आपकी काम आने वाली पीढ़ियों के साथ आगे जाना वाला है। समाज में नन्हे-नन्हे बदलाओं की ज़मीन तैयार करने वाला है। अपने काम से जुड़ी पढ़ाई करना, रोज़मर्रा के अनुभवों को डायरी में लिखना, उन अनुभवों से आगे की कार्ययोजना बनाना और हर बच्चे के सीखने के तरीके पर ग़ौर करना। उसको अपने तरीके से सीखने में मदद करना भी एक अच्छे शिक्षक की पहचान है। वे बच्चों के पास जाते हैं। उनको अपना काम करते हुए देखते हैं, उनको पेश आने वाली परेशानियों और उनको सफल बनाने वाले कारणों को समझते हैं। साथ ही साथ बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। उसके प्रयासों की सराहना करते रहते हैं ताकि सकारात्मक ऊर्जा की शृंखला वाली कड़ी टूटने न पाए। इससे कोशिश करने वाले बाकी बच्चों को भी हौसला मिलता है कि हम भी पढ़-लिख सकते हैं। कक्षा में अपने प्रदर्शन को बेहतर बना सकते हैं।
मानव विकास सूचकांक 2022: भारत में यूएनडीपी की रेजिडेंट प्रतिनिधि शोको नोडा ने कहा, पब्लिक हेल्थ में अधिक इन्वेस्टमेंट है जरूरी
नई दिल्ली: गुरुवार (8 सितंबर) को जारी मानव विकास रिपोर्ट 2021/2022 में भारत 191 देशों और क्षेत्रों में से 132वें स्थान पर है. नवीनतम मानव विकास रिपोर्ट, अनसर्टेन टाइम्स, अनसेटल्ड लाइव्स: शेपिंग अवर फ्यूचर इन ए ट्रांसफॉर्मिंग वर्ल्ड के अनुसार, भारत की एचडीआई वैल्यू 0.633 है जो देश को मीडियम ह्यूमन डेवलपमेंट कैटेगरी में रखती है, जो 2020 की रिपोर्ट में 0.645 के मूल्य से कम है. मानव विकास सूचकांक (HDI) में भारत 189 देशों में 131वें स्थान पर है.
भारत के पड़ोसी देशों में श्रीलंका (73), चीन (79), बांग्लादेश (129) और भूटान (127) ने भारत से बेहतर प्रदर्शन किया है. केवल पाकिस्तान (161), म्यांमार (149) और नेपाल (143) की स्थिति बदतर थी.
मानव विकास सूचकांक 2021/2022 पर भारत की स्थिति को समझने के लिए, NDTV ने विशेष रूप से भारत में UNDP की रेजिडेंट प्रतिनिधि, शोको नोडा से बात की. भारत की गिरती रैंक के बारे में बात करते हुए, नोडा ने कहा,
रैंकों की तुलना करना हमेशा सटीक नहीं होता है. उदाहरण के लिए, देशों की संख्या 189 से 191 हो गई है. इसलिए, यह वास्तव में रैंकिंग के बारे में नहीं है बल्कि मानव विकास मूल्यों को स्वयं और उनकी प्रवृत्तियों को देखना बहुत महत्वपूर्ण है. ये मूल्य बहुत अधिक सटीक कहानियां बताएंगे.
एचडीआई मानव विकास के तीन प्रमुख आयामों पर प्रगति को मापता है – एक लंबा और स्वस्थ जीवन, शिक्षा तक पहुंच और एक सभ्य जीवन स्तर. एचडीआई की गणना चार संकेतकों – जन्म के समय जीवन प्रत्याशा, स्कूली शिक्षा के औसत वर्ष, स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष और प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (जीएनआई) का उपयोग करके की जाती है. चार मापदंडों में से प्रत्येक पर भारत की स्थिति के बारे में बात करते हुए, नोडा ने कहा,
भारत ने क्या संकेतक बेहतर है तीन मापदंडों पर गिरावट की है और एक पर सुधार किया है. सबसे पहले, स्वास्थ्य में, जीवन प्रत्याशा 69.7 से गिरकर 67.2 वर्ष हो गई है एजुकेशनल साइड के लिए, दो इंडिकेटर हैं, स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्षों में गिरावट है, लेकिन स्कूली शिक्षा के औसत वर्षों में वृद्धि देखी गई है. यह गिरावट महामारी के दौरान स्कूल बंद होने के कारण है. अंत में, जीवन स्तर; यहीं पर प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (GNI) आती है और भारत के लिए यह $6,681 से गिरकर $6,590 हो गई है.
नोडा क्या संकेतक बेहतर है क्या संकेतक बेहतर है ने कहा कि भारत अकेला ऐसा देश नहीं है जो गिरावट का सामना कर रहा है. उन्होंने कहा,
महामारी, क्लामेट चेंज और युद्ध जैसे संकटों के कारण दुनिया भर के 90 प्रतिशत देश इस गिरावट का सामना कर रहे हैं. निश्चित रूप से, महामारी एक कारण है और उन संकटों में से एक है जिसका हम अभी सामना कर रहे हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन को देखें और पाकिस्तान में क्या हो रहा है जहां एक तिहाई आबादी विस्थापित है, इन पर भी ध्यान देना जरूरी है. रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध चल रहा है. संकट की गति अभूतपूर्व है और हम, मनुष्य के रूप में, एक के बाद एक संकट को हल करने में सक्षम नहीं हैं क्योंकि यह ज्यादा हो रहा है.
उन क्षेत्रों के बारे में पूछे जाने पर जहां भारत को मानव विकास में सुधार के लिए काम करने की आवश्यकता है, नोडा ने जेंडर पर जोर दिया. मेल और फीमेल के बीच की खाई को पाटने के लिए भारत सरकार की तारीफ करते हुए, नोडा ने कहा,
सबसे पहले, खाई को कम किया जा रहा है और दूसरी बात यह है कि दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में इसे तेजी से कम किया जा रहा है. ये अच्छी खबर है. लेकिन निश्चित रूप से चुनौतियां बनी हुई हैं, और इस देश में दुनिया में सबसे कम महिला श्रम शक्ति भागीदारी है. जेंडर-रेस्पोंसिव पॉलिसी और समस्याएं पहले से ही मौजूद हैं, लेकिन मुझे लगता है कि महिला सशक्तिकरण से परे और अधिक किए जाने की आवश्यकता है. असमानता को कम करने के लिए सामाजिक सुरक्षा भी विस्तार और मजबूती के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और मौजूदा सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के मजबूत कार्यान्वयन के लिए न केवल महिलाओं को बल्कि अन्य कमजोर समूहों को भी शामिल करना महत्वपूर्ण है. तीसरा, शिक्षा और आय जैसे अन्य मानव विकास संकेतकों में सुधार के लिए हमारे पास स्वस्थ आबादी होनी चाहिए. पब्लिब हेल्थ में अधिक निवेश महत्वपूर्ण है.
COVID-19 महामारी ने दुनिया को दिखा दिया है कि पब्लिक हेल्थ में इन्वेस्टमेंट क्यों जरूरी है.
अपनी बात खत्म करते समय, नोडा ने भारत के विकास के बारे में भी बात की और कहा कि देश ने 2005 और 2016 के बीच बहुआयामी गरीबी से 270 मिलियन लोगों को निकाला है. हालांकि, यह ऊपर की प्रवृत्ति भी प्रभावित हुई है.
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