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Futures Calendar Spread क्या है, जानिए कैसे इसके जरिए रिस्क कम कर कमोडिटी मार्केट में कमा सकते क्या फ्यूचर्स हाई रिस्क हैं है मुनाफा
अगर आप भी कमोडिटी मार्केट में कारोबार करना चाहते हैं लेकिन ज्यादा जोखिम होने की वजह से अब तक इस मार्केट से दूरी बनाए हुए हैं तो आज हम आपको एक ऐसे स्ट्रैटेजी के बारे में बताएंगे, जिसका इस्तेमाल कर रिस्क को काफी कम किया जा सकता है। हम बात कर रहे हैं- Futures Calendar Spread स्ट्रैटेजी की। इसके जरिए ना सिर्फ आप अपने सौदे पर जोखिम कम करते हैं, बल्कि इसमें मुनाफे की गारंटी भी बढ़ जाएगी।
Futures Calendar Spread क्या है?
Futures Calendar Spread के जरिए विभिन्न एक्सपायरी वाले कॉन्ट्रैक्ट में एक साथ खरीद-बिक्री की जा सकती है। एक ही कमोडिटी के दो अलग-अलग कॉन्ट्रैक्ट खरीदें और बेचें जा सकते है। दोनों सौदे के प्राइस अंतर को Calendar Spread कहते हैं। दोनों महीने के भाव में जो अंतर होगा वही आपका प्रॉफिट होता है।
वायदा और विकल्प के बीच अंतर
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भारत में ईक्विटीज़ से बड़ा मार्केट है ईक्विटी क्या फ्यूचर्स हाई रिस्क हैं डेरिवेटिव मार्केट भारत में डेरिवेटिव्स में मुख्य रूप से दो प्रोडक्ट्स हैं – ऑप्शन्स औऱ फ्यूचर्स फ्यूचर्स और ऑप्शन्स के बीच अंतर है कि फ्यूचर्स लीनियर हैं जब कि ऑफ्शन्स नॉन-लीनियर हैं। डेरिवेटिव्स का अर्थ है कि इनकी खुद की कोई वैल्यू नहीं होती है लेकिन उनकी वैल्यू अंडरलाइंग ऐसेट से व्युपत्रित होती है। उदाहरण के लिए, रिलाएंस इन्डस्ट्रीज़ पर ऑप्शन्स और फ्यूचर्स रिलाएंस इन्डस्ट्रीज़ के स्टॉक के दाम पर निर्भर है और उन्हीं से उनकी वैल्यू निर्दिष्ट होती है। ऑप्शन्स और फ्यूचर्स की ट्रेडिंग भारतीय ईक्विटी मार्केट के महत्वपूर्ण भाग हैं। आइए हम ऑप्शन्स और फ्यूचर्स के बीच अंतर को समझें और जानें कि किस प्रकार इक्विटी फ्यूचर्स और ऑप्शन्स मार्केट समग्र इक्विटी मार्केट के अभिन्न अंग हैं।
फ्यूचर्स और ऑप्शन्स क्या हैं?
Investment Tips: नए साल में रिस्क उठाने को हो तैयार तो इंवेस्टमेंट के ये तरीके आएंगे काम, पैसा बनेगा तो क्या फ्यूचर्स हाई रिस्क हैं छप्पर फाड़ बनेगा
Future and Options Trading: शेयर बाजार में फ्यूचर एंड ऑप्शन्स ट्रेडिंग का एक माध्यम है. हालांकि क्या फ्यूचर्स हाई रिस्क हैं इस माध्यम में हाई रिस्क मौजूद है. फ्यूचर एंड ऑप्शन्स दोनों ही ट्रेडिंग के अलग-अलग प्रकार हैं, जिसमें निवेश अलग-अलग प्रकार से किया जा सकता है.
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डेट कटेगिरी में क्या होगा
रिस्क-ओ-मीटर में जोखिम किस आधार पर तय होंगे सेबी ने इस बारे में जानकारी दी है. अगर कोई डेट सिक्योरिटी है तो उसके लिए क्रेडिट रिस्क वैल्यू, इंटरेस्ट रेट रिस्क वैल्यू और लिक्विडिटी रिस्क वैल्यू अहम पैमाना होगा. क्रेडिट रिस्क में क्रेडिट रेटिंग के आधार पर जोखिम तय होगा. जबकि इंटरेस्ट रेट रिस्क के लिए पोर्टफोलियो का मैकाले ड्यूरेशन को आधार बनाया जाएगा. मैकाले ड्यूरेशन से किसी बॉन्ड के कैश फ्लो की मेच्योरिटी निकाली जाती है. जबकि लिक्विडिटी रिस्क निकालने के लिए क्रेडिट रेटिंग के अलावा लिस्टिंग की स्थिति और डेट के स्ट्रक्चर को आधार बनाया जाएगा.
इसी तरह इक्विटी सेगमेंट में मार्केट कैपिटलाइजेशन, वोलाटिलिटी और इंपैक्ट कॉस्ट को पैमाना बनाया गया है. मार्केट कैपिटलाइजेशन डेटा AMFI की छमाही रिपोर्ट से तय होगी. जबकि वोलाटिलिटी के लिए सिक्योरिटी की कीमत में रोजाना उतार-चढ़ाव आधार होगा. हालांकि इसके लिए दो साल के आंकड़ों को आधार बनाया जाएगा. जबकि इंपैक्ट कॉस्ट इससे तय होगा कि शेयर को बेचने और खरीदने की लागत कितनी आती है. ये शेयर की लिक्विटी पर आधारित होती है.
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