दवाओं का पेटेंट नहीं तो मूल्य निर्धारण जरूरी
केंद्र सरकार और फार्मा उद्योग उन दवाओं के लिए मूल्य निर्धारण तंत्र पर काम कर रहे हैं, जिनका पेटेंट नहीं हो रहा है। यह कदम प्रमुख मधुमेह दवाओं के हाल ही में पेटेंट की समाप्ति की पृष्ठभूमि को देखते हुए महत्त्वपूर्ण है। उद्योग जगत के कई सूत्रों ने बताया कि पिछले शुक्रवार को उद्योग के प्रतिनिधियों और फार्मास्युटिकल विभाग के बीच हितधारकों की बैठक हुई थी। उन्होंने कार्यों में मूल्य निर्धारण तंत्र का विवरण साझा किया।
उद्योग जगत से जुड़े एक सूत्र ने कहा कि अभी इस विषय पर अंतिम निर्णय निर्णय होना बाकी है, लेकिन मूल्य निर्धारण तंत्र के तहत प्रवर्तक मूल्य के 50 फीसदी पर पेटेंट समाप्त होने वाली दवाओं के लिए एक उच्चतम कीमत निर्धारित करने की संभावना है। सूत्र ने समझाया कि यदि कोई ऐसी दवा हैं जो पेटेंट शेयर्स की कीमतों का निर्धारण किए गए अणु के साथ संयोजन में कीमत नियंत्रण के अधीन है, तो उस पर अधिकतम कीमत जो ली जा सकती है वह मौजूदा उच्चतम कीमत से 20 शेयर्स की कीमतों का निर्धारण फीसदी कम है।
उदाहरण के लिए यदि बाजार में सिटाग्लिप्टिन (मधुमेह-रोधी पेटेंटयुक्त अणु, जिसका पेटेंट इसी साल समाप्त हुआ है) और मेटफॉर्मिन (मधुमेह की एक अन्य सामान्य दवा जो पहले से ही मूल्य नियंत्रण में है) का संयोजन बाजार में बिक रहा है, तो उसकी अधिकतम कीमत सिटाग्लिप्टिन की प्रवर्तक कीमत की 50 फीसदी निर्धारित की गई है।
मामले की जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने कहा कि एक बार उच्चतम कीमत निर्धारित हो जाने के बाद इसकी समीक्षा एक साल के बाद की जाएगी, जब तक और अधिक ब्रांड बाजार में आ जाएंगे। फिर नियामक बाजार में उतरने वाले नए ब्रांडों की कीमतों के रुझान की समीक्षा करेगा और फिर से नई उच्चतम कीमत तय करेगा। उन्होंने कहा कि इससे उपभोक्ता और निर्माताओं दोनों के लिए अधिक अनुमानित मूल्य निर्धारण व्यवस्था तैयार होगी।
सूत्र ने कहा, ‘मधुमेह की प्रमुख दवा सिटाग्लिप्टिन का पेटेंट समाप्त होने के बाद इसकी कीमतों में 35 फीसदी और उससे अधिक की कमी की गई है। बाजार की प्रतिस्पर्धा कीमतों को नियंत्रण में रख रही है। लेकिन प्रस्ताव दवा निर्माताओं और उपभोक्ता के लिए अधिक अनुमानित मूल्य निर्धारण वातावरण बनाने का है।
राष्ट्रीय फार्मास्युटिकल कीमत निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) ने जुलाई में मधुमेह-रोधी श्रेणी में पेटेंट समाप्त होने वाली नवीनतम दवा सिटाग्लिप्टिन की कीमतों को सीमित करने के लिए तेजी से कदम बढ़ाया है। इसने अगस्त में इन दोनों दवाओं की कीमतों को 16-25 रुपये प्रति टैबलेट के दायरे में सीमित कर दिया।
शोध और विश्लेषण फर्म एडब्ल्यूएसीएस की अध्यक्ष (विपणन) शीतल सपले ने अगस्त में बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया था कि इस अणु के पेटेंट के खत्म होने के एक महीने के भीतर 5 फीसदी सिटाग्लिप्टिन बाजार पर जेनेरिक ब्रांडों का कब्जा है।
85 जेनेरिक ब्रांडों के साथ लगभग 27 खिलाड़ियों ने बाजार में कदम रखा है और अगले कुछ महीनों में 100 सिटाग्लिप्टिन और इसके संयोजन ब्रांडों के साथ लगभग 50 खिलाड़ियों के भारतीय बाजार में आने की उम्मीद है।
उन्होंने कहा कि कीमतों में गिरावट आई है, जबकि सिटाग्लिप्टिन की कीमत 36-45 रुपये प्रति टैबलेट थी और जेनेरिक ब्रांडों की कीमत 7-15 प्रति टैबलेट के दायरे में थी। एक मूल्य निर्धारण तंत्र तैयार करने की आवश्यकता है क्योंकि कई रोगी जो खर्च कर सकते हैं, वे नवप्रवर्तक ब्रांड के साथ रहना पसंद कर सकते हैं। पेटेंट समाप्त होने से बाजार में नई दवाइयां भी आती है।
शेयर्स की कीमतों का निर्धारण
वित्त मंत्रालय
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड
नर्इ दिल्ली, 25 जुलार्इ, 2016
विषय : शेयर के संबंध में कंपनी द्वारा प्राप्त राशि के निर्धारण की प्रणाली को निर्धारित करने के लिए मसौदा नियम - आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 115थक - संबंधित
आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 115थक के अंतर्गत 20 प्रतिशत की दर पर अतिरिक्त आयकर कंपनी द्वारा असूचीबद्ध शेयर की पुन: खरीद में से उत्पन्न होने वाली वितरित आय पर लगाया जाता है। वितरित आय को राशि जिसे ऐसे शेयरों के निगर्मन के लिए कंपनी द्वारा प्राप्त किया गया था, से शेयर की पुन: खरीद पर कंपनी द्वारा दिए गए प्रतिफल होना शेयर्स की कीमतों का निर्धारण परिभाषित किया गया था।
2. वित्त अधिनियम, 2016 राशि जिसे कंपनी द्वारा ऐसे शेयरों के निगर्मन के लिए कंपनी द्वारा प्राप्त किया गया था, उस तरीके में निर्धारित किया गया था जिसे निर्धारित किया जा सकता है, से कटौती करके शेयर की पुन: खरीद पर कंपनी द्वारा दिए गए प्रतिफल के इरादे से प्रभावी तिथि 01.06.शेयर्स की कीमतों का निर्धारण 2016 से "वितरित आय" की परिभाषा को संशोधित किया है।
3. इसलिए, विभिन्न परिस्थितियों, जिसमें शेयरों को जारी किया गया है, के अंतर्गत कंपनी द्वारा प्राप्त राशि के निर्धारण के लिए कार्यप्रणाली आयकर नियम, 1962 के संशोधन के माध्यम से मुहैया कराना प्रस्तावित किया गया है। इस संबंध में मसौदे संबंधी नियमों, जिन पर हितधारक तथा जन साधारण टिप्पणी तथा सुझावों को र्इ-मेल पते [email protected] पर इलैक्ट्रानिकली रूप से 31 जुलार्इ, 2016 तक भेज सकते हैं, निम्नानुसार है :
"(1) जहाँ शेयरों को किसी व्यक्ति द्वारा इसके अंशदान पर एक कंपनी द्वारा जारी किया गया है तो प्रीमियम के रूप में वास्तविक रूप से प्राप्त किसी राशि सहित ऐसे शेयर के संबंध में कंपनी द्वारा वास्तविक रूप से प्राप्त प्रदत्त राशि शेयर जारी करने के लिए कंपनी द्वारा प्राप्त राशि होगी।
(2) जहाँ कंपनी शेयर के पुन: खरीद से पहले किसी समय राशि को कम करके राशि ऐसे शेयर के संबंध में प्राप्त राशि में से किसी राशि को वापस किया था तो ऐसा रिटर्न शेयर को जारी करने के लिए कंपनी द्वारा प्राप्त राशि होगी।
(3) जहाँ शेयर को समामेली कंपनी के शेयर अथवा शेयरों के स्थान पर एकीकरण की एक योजना के अंतर्गत, एक समामेलनी कंपनी के तौर पर एक कंपनी द्वारा जारी किया गया हो, तो, इस नियम के अनुसार निर्धारित ऐसे शेयर अथवा शेयरों के संबंध में एकीकृत कंपनी द्वारा प्राप्त राशि उसके द्वारा ऐसे जारी शेयर के संबंध में एकीकृत कंपनी द्वारा प्राप्त राशि होना समझी जाएगी।
(4) डिमर्जर योजना के अंतर्गत इसके द्वारा जारी शेयरों के संबंध में परिणामी कंपनी के तौर पर, एक कंपनी द्वारा प्राप्त राशि वह राशि होगी जो इस नियम के अनुसार निर्धारित मूल शेयरों के संबंध में डिमर्जर कंपनी द्वारा प्राप्त राशि को वहन करता है उसी अनुपात में जैसा ऐसे डिमर्जर से तुरंत पहले डिमर्जर कंपनी के कुल मूल्य को वहन करने वाला एक डिमर्जर में स्थानान्तरित शेयर्स की कीमतों का निर्धारण परिसंपत्ति की निविल बही राशि होती है।
(5) डिमर्जर कंपनी में मूल शेयरों के संबंध में डिमर्जर कंपनी द्वारा प्रात्त राशि उप-नियम (4) के अंतर्गत ऐसी प्राप्त राशि से कम करके मानी जाएगी।
(6) जहाँ शेयरों को कंपनी में मौजूदा शेयरधारण के आधार पर किसी विचार-विमर्श के बिना जारी अथवा आवंटित किया गया है तो ऐसे शेयरों के संबंध में प्रतिफल शून्य के तौर पर समझा जाएगा।
(7) बांड अथवा डिबेंचर, उसके द्वारा जारी किसी भी रूप में डिबेंचर स्टाक अथवा जमा प्रमाणपत्र के शेयर्स की कीमतों का निर्धारण रूपांतरण पर उसके द्वारा जारी किसी शेयर के संबंध में एक कंपनी द्वारा प्राप्त राशि साधन के संबंध में कंपनी द्वारा प्राप्त राशि का वह भाग होगी जैसा इसे रूपांतरित किया गया है।
(8) किसी अन्य मामले में शेयर का अंकित मूल्य शेयर को जारी करने के लिए प्राप्त राशि होना समझा जाएगा"
सार्वजनिक निर्गम के मूल्य निर्धारण के संबंध में सेबी कंपनियों से विवरण मांगेगा
पेटीएम ने पब्लिक इश्यू में शेयर रु. 2150 9.3 प्रतिशत कम यानी रु। की उच्च कीमत पर पेश किए जाने के बाद। भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड ने 1955 से लिस्टिंग मूल्य के बाद भी सार्वजनिक निर्गम में पेश किए गए शेयरों की कीमत तय करने के मुद्दे पर आईपीओ के साथ आने वाली कंपनियों से अधिक विस्तृत कारण पूछने की तैयारी शुरू कर दी है। संभावना है कि 30 सितंबर को होने वाली सेबी बोर्ड की बैठक में इस मुद्दे पर विस्तार से चर्चा करने के बाद फैसला लिया जाएगा। पेटीएम की तरह, Zomato के रु। 76 की कीमत पर आवंटित शेयर की कीमत भी आज के ऑफर प्राइस यानी रुपये से कम है। 62 की बात कर रहे हैं। ज्ञात हो कि सेबी ने इस पर चर्चा करने के लिए 30 सितंबर को एक बैठक बुलाई है क्योंकि सार्वजनिक निर्गमों में ऐसे मामले बढ़ रहे हैं जो निवेशकों के बीच काफी रुचि को आकर्षित करते हैं।
सेबी कंपनियों को निजी इक्विटी निवेशकों के लिए अनिवार्य खुलासे करने के लिए कह सकता है और सार्वजनिक मुद्दों में दी जाने वाली कीमतों के बीच एक बड़ा अंतर क्यों है। यह कंपनियों को उनके कारण बताने के लिए मजबूर कर सकता है। जब सार्वजनिक निर्गम में किसी कंपनी के शेयरों की कीमत अधिक होती है और लिस्टिंग मूल्य ऑफ़र मूल्य से कम होता है, तो निवेशकों को इसमें कुछ गड़बड़ होने का संदेह होता है। इसलिए यह संभावना है कि कीमतों को निर्धारित करने के कारणों पर कंपनियों से अधिक विवरण की मांग की जाएगी। दूसरे शब्दों में, कंपनी को अतिरिक्त कारणों सहित, प्रस्ताव मूल्य निर्धारित करने के तरीके के बारे में बताने के लिए कहा जाएगा।
कंपनी को उन कारकों का खुलासा करना होगा जिन पर निजी फंडर्स को शेयर आवंटित करते समय मूल्य निर्धारित किया गया था और जिसके आधार पर शेयरों की कीमत सार्वजनिक निर्गम में पेश करते समय निर्धारित की गई थी। शेयरों के खरीदार आम तौर पर निवेश पर वापसी, कंपनी की प्रति शेयर आय, कंपनी के मूल्य-से-आय अनुपात, इक्विटी पर वापसी, कंपनी की समग्र विकास दर और कंपनी की लाभप्रदता पर विचार करके निवेश करते हैं। साथ ही कंपनी यह तय करके निवेश करती है कि वह किस क्षेत्र से संबंधित है और उस क्षेत्र के विकास के लिए कितना अवसर है।
सेबी नहीं चाहता कि नई तकनीक के साथ आने वाली कंपनियों के शुरुआती ऑफर में शेयरों की कीमतें फिलहाल मनमाने ढंग से तय की जाएं। यह कंपनियों की जिम्मेदारी और अधिकार है कि वे वह कीमत तय करें जिस पर कंपनियां आईपीओ लाएगी। हालांकि, कीमत तय करने के तर्कसंगत कारणों को प्रस्तुत करना होगा। एक समय पर कैपिटल इश्यू के नियंत्रक ने सार्वजनिक पेशकश में पेश किए गए शेयरों की कीमत निर्धारित करने में भूमिका निभाई। ये दिन अब खत्म हो गए हैं। अब कंपनियां अपने आईपीओ की कीमत खुद तय कर सकती हैं। लेकिन कंपनियों को सेबी के सामने पेश किए गए शेयरों की कीमत को सही ठहराते हुए विवरण देना होगा।
सेबी की राय है कि एक कंपनी ने प्राइवेट प्लेसमेंट में किसी को रु. 100, लेकिन छह महीने बाद जब वही कंपनी अपने शेयरों के सार्वजनिक निर्गम के साथ रु। सेबी को कोई आपत्ति नहीं है अगर वह उन्हें 450 की कीमत पर पेश करता है। लेकिन कंपनियों को कीमतों में इस अंतर की विस्तृत वजह बतानी होगी। इसका खुलासा सेबी को करना होगा। सेबी का मानना है कि आईपीओ निवेशकों को भी कीमतों में इस अंतर के कारणों के बारे में पता होना चाहिए। इन कारणों को जानने के बाद, आईपीओ निवेशक यह तय कर सकते हैं कि पब्लिक इश्यू के लिए आवेदन करना है या नहीं।
पेटीएमः यह तो सोचा ही न था
पेटीएम का आइपीओ बाजार में आने के पहले ही दिन उसके शेयर की कीमत 27 फीसद लुढ़क गई और कंपनी उबर नहीं पाई
एम.जी. अरुण
- नई दिल्ली,
- 29 मार्च 2022,
- (अपडेटेड 29 मार्च 2022, 8:58 PM IST)
पेटीएम को कभी भारत के वित्तीय क्षेत्र में स्टार्ट-अप की सबसे बड़ी कहानियों में से एक बताया गया था. आज यह आइपीओ के बाद हर दांव गलत पड़ने वाली दास्तान में तब्दील होती मालूम देती है. इसकी स्थापना नोटबंदी के बाद डिजिटल भुगतान के पोस्टर बॉय के तौर पर सुर्खियों में आए विजय शेखर शर्मा ने की थी. आज पेटीएम महज पांच महीने पहले नवंबर 2021 में शेयर बाजार में पहला कदम रखने से पहले की गई उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए हाथ-पैर मार रही है. फिलहाल यह कंपनी तमाम किस्म की मुश्किलों से घिरी है. आरबीआइ ने इसकी आइटी (सूचना प्रौद्योगिकी) प्रणालियों के ऑडिट का आदेश दिया है और इसके पूरा होने तक नए ग्राहकों की 'ऑनबोर्डिंग' यानी पंजीकरण पर अस्थायी रोक लगा दी है.
उधर इसके शेयर की कीमतों में लगातार भीषण गिरावट आ रही है. पेटीएम की मूल कंपनी वन97 के शेयर बीएसई में 21 मार्च को 565.35 रुपए में खरीदे-बेचे जा रहे थे. यानी महज पांच महीने पहले 2,150 रुपए के निर्गम मूल्य के मुकाबले शेयर में 70 फीसद से भी ज्यादा की गिरावट आई है. एक्सचेंजों को 12 मार्च को दिए एक नोटिस में पेटीएम ने कहा कि आरबीआइ ने 'पेटीएम बैंक में निरीक्षण को लेकर कुछ खास किस्म की चिंताएं' जाहिर की हैं और कंपनी 'आरबीआइ के निर्देशों के पालन में फौरन कदम उठा रही है, जिनमें फर्म के आइटी सिस्टम का व्यापक ऑडिट करवाने के लिए प्रतिष्ठित बाहरी ऑडिटर की नियुक्ति भी है'. उसने जोर दिया कि नए ग्राहकों के पंजीकरण पर आरबीआइ की रोक का असर मौजूदा ग्राहकों की सेवाओं पर नहीं पड़ेगा. मीडिया की खबरों के मुताबिक, पेटीएम पेमेंट बैंक (पीपीबी) के पास 5.8 करोड़ खाताधारक और 30 करोड़ मोबाइल वॉलेट हैं.
कंपनी ने स्पष्ट किया कि 'पेटीएम यूपीआइ, पेटीएम वॉलेट, पेटीएम फास्टटैग के तमाम मौजूदा यूजर और बैंक खाते भुगतान के लिए डेबिट कार्ड और नेट बैंकिंग सहित अपने इन साधनों का इस्तेमाल करते रह सकते हैं.' रोक के बाद एक इंटरव्यू में शर्मा ने आरबीआइ को गड़बड़ियां मिलने की बात मानते हुए कहा कि ''(आरबीआइ ने) कुछ व्यवस्थागत मुद्दों की तरफ इशारा किया है जिन्हें सुलझाने की जरूरत है'', पर कोई ब्योरा नहीं दिया कि ये मुद्दे क्या हैं. उन्होंने इतना ही कहा कि ''कुछ काम है जो (आरबीआइ) चाहता है कि हम करें. वे हमें रास्ता दिखा रहे हैं.'' स्पष्टता न होने का ही शायद नतीजा है कि रोक के कारणों को लेकर भारी कयास लगाए जा रहे हैं. शर्मा को जिससे धक्का लगा, उनमें एक थ्योरी यह थी कि पीपीबी के डेटा में सेंधमारी हुई, जिसमें ग्राहकों की जानकारी ऐसी चीनी फर्मों के साथ साझा की गई जिनमें से कुछ की हिस्सेदारी पेटीएम में है. (वन97 में चीन की अलीबाबा ग्रुप होल्डिंग और सहयोगी कंपनी ऐंट ग्रुप का पैसा लगा है.)
पेटीएम पिछले साल नवंबर में शेयर बाजार में उतरने के फौरन बाद वित्तीय उथल-पुथल से घिर गई. 18 नवंबर को वन97 के शेयरों की कीमतें 27 फीसद धराशायी हो गईं, जो शेयर खुलने के पहले ही दिन शेयरों की बिक्री में शेयर्स की कीमतों का निर्धारण 1,000 करोड़ रुपए से ज्यादा की सबसे बड़ी गिरावट थी. शेयर 1,950 रुपए पर खुला, जो उसकी पेशकश कीमत 2,150 रुपए से 9.3 फीसद कम था. दिन खत्म होते-होते यह 1,564 रुपए पर आ गया, जिससे निवेशकों की करीब 5,000 करोड़ रुपए की संपदा स्वाहा हो गई. 22 नवंबर तक कंपनी का बाजार पूंजीकरण एक लाख करोड़ रु. से नीचे 88,184.67 करोड़ रु. था, जबकि लिस्टिंग के समय इसके 1.4 लाख करोड़ रु. होने की उम्मीद की गई थी. तब से यह लगातार गिर रहा है और 21 मार्च को वन97 का बाजार पूंजीकरण 36,664.32 करोड़ रु. था. पेटीएम की शेयर बाजार से जुड़ी परेशानियों की भविष्यवाणी करने वालों में अव्वल ब्रोकरेज फर्म मैक्वारी ने फर्म के शेयरों की कीमत 450 रुपए तक जाने का पूर्वानुमान लगाया है.
निवेशक इतनी बड़ी तादाद में पेटीएम का दामन क्यों छोड़ रहे हैं? जानकार इसकी पड़ताल करते हुए फर्म के बिजनेस मॉडल में स्पष्टता न होने का हवाला देते हैं. वे कहते हैं कि इसने इतनी सारी चीजों में उंगलियां फंसा रखी हैं कि निवेशकों के लिए यह समझना मुश्किल हो जाता है कि पेटीएम का बिजनेस मॉडल ठीक-ठीक है क्या. दूसरी वजह कामकाज के तमाम उपक्षेत्रों में फर्म के सामने मौजूद और लगातार बढ़ती प्रतिस्पर्धा है. एलिक्सिर इक्विटीज के दीपन मेहता ने एक इंटरव्यू में कहा, ''साफ ही नहीं है कि बिजनेस मॉडल क्या होगा, ग्रोथ कैसे होगी और मुनाफे की राह कैसी दिखती है. जब तक पेटीएम इन बातों पर साफ विजन पेश नहीं करती, शेयरों की कीमत काफी दबी ही रहेगी.''
पेटीएम की परेशानियां टेक्नोलॉजी स्टार्ट-अप से जुड़े कुछ बड़े मुद्दों पर भी रोशनी डालती हैं, जिनके बारे में जानकार लाल झंडी दिखाते रहे हैं. शेयर बाजारों में स्टार्ट-अप को नाप-जोख के तमाम पैमानों पर लगातार खोजबीन का सामना करना होता है कि अपनी मार्केट हिस्सेदारी बढ़ाते हुए अपने-अपने क्षेत्रों में उनका दबदबा कितना है, उन्हें कितनी पूंजी सुलभ है और घाटा उठाते रहने की उनकी क्षमता कितनी है. निवेशकों को यह भी जानना होता है कि कितने समय में इन स्टार्ट-अप से मुनाफे मिलने की उम्मीद है. इन पहलुओं पर स्पष्टता नहीं होने से मूल्य निर्धारण कम होता है. फिर डिजिटल भुगतान क्षेत्र में जबरदस्त प्रतिस्पर्धा है.
संकट में घिरी इस फर्म के लिए मैक्वारी को निकट भविष्य में बहुत उम्मीद नहीं दिखती. उसका कहना है कि 'पेटीएम का मूल्य निर्धारण महंगा (बना रहेगा), खासकर मुनाफा मिलना लंबे समय तक मुश्किल बना रहना चाहिए.' पेटीएम और वन97 की लगातार बढ़ती मुश्किलों के बीच निवेशक अपने निवेश के मूल्य को घटता देखते रह सकते हैं. इससे स्टार्ट-अप में निवेशकों के आम भरोसे को धक्का लगा है. यह शेयर लाने वाले दूसरे स्टार्ट-अप्स के लिए परेशान करने वाला संकेत है. मीडिया की खबरों के मुताबिक, पेटीएम की मुश्किलों के पैमाने को देखकर उनमें से कुछ ने अपना पहला शेयर लाना टाल दिया है और मूल्य निर्धारण के लक्ष्य फिर से आंके जा रहे हैं. असल में, अगर कोई एक बात साफ है तो वह यह कि मुश्किल दौर अभी आगे भी जारी रहता मालूम देता है.
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