विनिमय दर और विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन
अमेरिकी डॉलर के बरअक्स भारतीय रुपये की विनिमय दर की बात करें तो कहा जा सकता है कि चीजें जितनी बदलती हैं, उतनी ही वे पहले जैसी बनी रहती हैं। चंद छोटे अंतरालों को छोड़ दिया जाए तो डॉलर के मुकाबले रुपये की प्रभावी वास्तविक विनिमय दर काफी हद तक अधिमूल्यित रही है। सितंबर 1949, जून 1966 और जुलाई 1991 में रुपये का क्रमश: 30.5, 57 और 19.5 फीसदी अवमूल्यन हुआ था।
सन 1949 में भारतीय रुपये का अवमूल्यन इसलिए हुआ कि दूसरे विश्वयुद्ध के बजाय पाउंड स्टर्लिंग, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कमजोर हुआ था। सन 1950 के दशक से ही अक्सर घरेलू हितों को ध्यान में रखते हुए रिजर्व बैंक और भारत सरकार ने अधिमूल्यित रुपये का समर्थन किया। अभी हाल ही में अमेरिका, यूरोप, जापान और यूनाइटेड किंगडम के केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरों को लंबे समय तक काफी कम रखा और वास्तविक ब्याज दरें 2008 के बाद लंबे समय के लिए ऋणात्मक हो गईं।
वर्ष 2022 में कई प्रमुख केंद्रीय बैंकों द्वारा मानक दरों में तेज इजाफा किए जाने की बदौलत यह रुझान पलट गया। आरबीआई ने भी उच्च उपभोक्ता मुद्रास्फीति नियंत्रित करने के लिए ऐसा किया। इस आलेख में हम इस विषय पर बात करेंगे कि रिजर्व बैंक को किस हद तक विदेशी मुद्रा भंडार रखना चाहिए और उसके क्या निहितार्थ होंगे। एक बार जब अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में काफी इजाफा कर दिया गया तो यह लाजिमी था कि यूरोपियन केंद्रीय बैंक, बैंक ऑफ इंगलैंड आदि का विदेशी मुद्रा भंडार कम होता। भारत में विदेशी मुद्रा व्यापार में भारत उनके निवेश के कारण रुपये पर भी दबाव बढ़ा।
रिजर्व बैंक रुपये में किसी भी तरह के तेज इजाफे या गिरावट को कम करना चाहता है ताकि घरेलू और विदेशी निवेशकों को वास्तविक अर्थव्यवस्था और वित्तीय प्रतिभूतियों में स्थिर माहौल मुहैया कराया जा सके। इसमें अर्थव्यवस्था के किसी भी क्षेत्र को लगने वाला झटका शामिल है।
मिसाल के तौर पर कोविड-19 महामारी और बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों के केंद्रीय बैंकों और सरकारों की ओर से ब्याज दरें बढ़ाने के फैसले तथा वित्तीय क्षेत्र में लिए जाने वाले अस्वाभाविक निर्णय। इसका अर्थ यह होगा कि भारत के पास विदेशी मुद्रा का भारी भरकम भंडार होना चाहिए ताकि घरेलू अर्थव्यवस्था, वस्तु एवं सेवा व्यापार, बाहरी मुद्रा विदेशी मुद्रा व्यापार में भारत में लिए जाने वाले कर्ज और विभिन्न प्रत्यक्ष एवं पोर्टफोलियो विदेशी निवेश आदि को लेकर सही कदम उठाए जा सकें।
फिलहाल भारत का विदेशी मुद्रा भंडार करीब 530 अरब डॉलर का है जो एक वर्ष पहले के 640 अरब डॉलर से कम है। बहरहाल, यह कहना अतिशयोक्ति होगी कि मुद्रा भंडार में आई 110 अरब डॉलर की कमी का 67 फीसदी इसलिए आया क्योंकि यूरो, पाउंड स्टर्लिंग और येन जैसी विदेशी मुद्राओं में रखी गयी सरकारी ऋण प्रतिभूतियों के दाम कम हुए क्योंकि ये मुद्राएं भी डॉलर के संदर्भ में तेजी से गिरीं।
जो ऋण योजनाएं रुपये में थीं उन पर नॉमिनल ब्याज दर जी 7 देशों की मुद्राओं में कम ब्याज दर की तुलना में काफी अधिक थी। ऐसी स्थिति में भारत में कुल कारक उत्पादकता अमेरिका अथवा पश्चिमी यूरोप की तुलना में उस स्थिति में अधिक होती जब कि रुपये में गिरावट नहीं आती। जैसा कि हम जानते हैं अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार में सटोरिया कारोबार करने वाले विनिमय दर को लेकर सौदेबाजी कर सकते हैं क्योंकि भारतीय रुपये तथा अन्य विकसित देशों की मुद्राओं के बीच ब्याज दर में अंतर है।
अमेरिकी सरकार उन देशों को कनखियों से देख रही है जिनका चालू खाते का अधिशेष सकल घरेलू उत्पाद के दो फीसदी या उससे अधिक है। अमेरिकी सरकार इस बात के एकदम खिलाफ है कि केंद्रीय बैंक डॉलर में विदेशी मुद्रा का अतिरिक्त भंडार तैयार करके रखें। चीन द्वारा चालू खाते का भारी भरकम अधिशेष तैयार करने के बाद से ही अमेरिका ने ऐसे प्रयास शुरू किए हैं। अप्रैल 2021 में अमेरिकी वित्त विभाग की अर्द्धवार्षिक रिपोर्ट में भारत को उन देशों की सूची में शामिल किया गया जिनके बारे में आशंका थी कि वे मुद्रा के साथ जानबूझकर छेड़छाड़ कर रहे हैं।
रुपये के अधिमूल्यन को लेकर भारतीय आयातकों के साथ-साथ विदेश से पैसा भेजने वालों और संस्थागत विदेशी निवेशकों की भी रुचि रही है। रुपये में अधिमूल्यन की प्रवृत्ति इसलिए भी है क्योंकि घरेलू स्तर पर नॉमिनल ब्याज दर अधिक है और यही वजह है कि जब भी अवसर मिला डॉलर को चरणबद्ध ढंग से एकत्रित करके रुपये को गिरने दिया गया।
इस दौरान घरेलू विदेशी मुद्रा भंडार के साथ किसी तरह की छेड़खानी नहीं की गई। खासतौर पर डॉलर के मुकाबले रुपये की विनिमय दर में आने वाली चरणबद्ध गिरावट की बात करें तो 2013 के टैपर टैंट्रम (अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा अचानक बॉन्ड खरीद कम करने पर निवेशकों द्वारा दी जाने वाली प्रतिक्रिया) के बाद इसे 10 पैसे प्रति माह होना चाहिए था।
इससे संबद्ध एक बात यह है कि चूंकि डॉलर के अगले कम से कम 10 वर्ष तक दबदबे वाली आरक्षित मुद्रा बने रहने की संभावना है इसलिए डॉलर, यूरो, पाउंड स्टर्लिंग, येन और चीन की रेनमिनबी के रूप में छह मुद्राओं वाली वास्तविक प्रभावी विनिमय दर के रुपये के बरअक्स आकलन में डॉलर को तवज्जो मिलनी चाहिए।
अब तक मूडीज ने भारत को बीएए3 की रेटिंग दी है जो निवेश श्रेणी की है और विदेशी संस्थागत निवेशक भी देश की रेटिंग को तवज्जो देने के नियमों से बंधे हैं। इस संदर्भ में देखें तो 2022-23 में चालू खाते का घाटा जीडीपी के 3.5 फीसदी के बराबर रह सकता है और भारतीय खुदरा मूल्य मुद्रास्फीति सितंबर 2022 में 7.4 फीसदी थी। भारत की जीडीपी में अगर तेज वृद्धि होती है तो विदेशी निवेशकों की चिंताएं दूर हो जाएंगी लेकिन 2022-23 के वृद्धि अनुमान करीब 6.5 फीसदी के हैं और नामुरा के मुताबिक 2023-24 में यह आंकड़ा कम होकर 5.2 फीसदी तक आ सकता है।
गत 25 अक्टूबर को ब्रेंट क्रूड का एक बैरल 93 डॉलर का था और यूक्रेन संकट के साथ जुड़ी अनिश्चितता के बरकरार रहने तक यह उसी स्तर पर विदेशी मुद्रा व्यापार में भारत बना रह सकता है। भारत के अल्पावधि के ऋण की बात करें तो एक वर्ष से कम की परिपक्वता वाला ऋण मार्च 2022 तक 267.7 अरब डॉलर मूल्य का था।
सभी विदेशी मुद्राओं के वर्तमान और अनुमानित भंडार समेत तमाम बातों पर विचार करते हुए तथा वस्तु व्यापार घाटे को ध्यान में रखते हुए यह कहना समझदारी होगी कि भारत को दिसंबर 2024 तक अपना विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाकर करीब 700 अरब डॉलर के स्तर तक ले जाना चाहिए।
(लेखक भारत के पूर्व राजदूत एवं वर्तमान में सेंटर फॉर सोशल ऐंड इकनॉमिक प्रोग्रेस के फेलो हैं)
Transforming India: दुनिया का चौथा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार भारत के पास
देश में विदेशी मुद्रा भंडार लगातार बढ़ रहा है। यह देश की अर्थव्यवस्था की मजबूती को दर्शाने वाले कई मानकों में से एक है। दुनिया में चीन, जापान और स्विट्जरलैंड के बाद चौथा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार आज भारत के पास है।
करीब 634 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार
साल 2018-19 में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 411.9 बिलियन डॉलर का रहा था जिसके बाद यह 2019-20 में करीब 478 अरब डॉलर का हुआ। तत्पश्चात 2020-21 में भी विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि दर्ज की गई। यह 577 बिलियन डॉलर पर जा पहुंचा और फिर 31 दिसंबर 2021 तक यह करीब 634 अरब डॉलर तक जा पहुंचा। यानि 2021-22 की पहली छमाही में विदेशी मुद्रा भंडार 600 बिलियन डॉलर के आंकड़े से ऊपर निकल कर 633.6 बिलियन डॉलर के उच्च स्तर पर पहुंच गया था।
32.6 प्रतिशत की वृद्धि
इस अवधि में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में करीब 32.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। इसी आधार पर नवंबर 2021 तक चीन, जापान और स्विट्जरलैंड के बाद भारत का विदेशी मुद्रा भंडार दुनिया में सबसे ज्यादा रहा। यह भारत की गौरवशाली उपलब्धि है जिस पर हर भारतीय को गर्व महसूस करना चाहिए। आज भारत मजबूत स्थिति में खड़ा है जिसमें पूरे देश का समग्र विकास होता दिखाई दे रहा है।
भारत के विदेशी व्यापार में मजबूती से बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार
दरअसल, वर्ष 2021-22 में भारत के विदेशी व्यापार में मजबूती से सुधार हुआ जिसके परिणामस्वरूप भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में भी वृद्धि दर्ज हुई। देश के विदेशी व्यापार के बढ़ने से भारत को विदेशी मुद्रा कमाने का सुनहरा अवसर मिला। सबसे खास बात यह रही कि ये उपलब्धि भारत ने कोविड संकट से लड़ते हुए हासिल की। यानि जब दुनिया के तमाम देश इस महामारी से जूझ रहे थे तब भारत ने स्वयं के प्रयासों से देश की आवाम को विदेशी व्यापार में वृद्धि दर्ज करने को प्रोत्साहित किया। उसी का नतीजा रहा है कि आज भारत कोविड संकट में छाई वैश्विक मंदी से तेजी से उभर रहा है। भारत 2021-22 के लिए निर्धारित 400 बिलियन अमेरिकी डॉलर के महत्वाकांक्षी वस्तु निर्यात लक्ष्य को हासिल करने के मार्ग पर बेहतर तरह से अग्रसर रहा और इस लक्ष्य को हासिल कर दिखाया। 2021-22 में 400 बिलियन डॉलर के एक्सपोर्ट में भारत ने नॉन बासमती राइस, गेहूं, समुद्री उत्पाद, मसाले और चीनी जैसी चीजों ने जमकर एक्सपोर्ट किया। उसके बाद पेट्रोलियम प्रोडक्ट यूएई निर्यात किए गए। साथ ही अन्य देशों में रत्न और आभूषणों का भी ज्यादा निर्यात किया गया। केवल इनता ही नहीं भारत ने इस बीच बांग्लादेश को ऑर्गेनिक और नॉन ऑर्गेनिक केमिकल निर्यात किया और ड्रग्स और फार्मास्युटिकल्स का सबसे ज्यादा निर्यात नीदरलैंड को किया। इससे देश के विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि में काफी मदद मिली। विदेशी मुद्रा भंडार के बढ़ने से अर्थव्यवस्था को बहुत से फायदे होते हैं।
रुपए को मिलती है मजबूती
रिजर्व बैंक के लिए विदेशी मुद्रा भंडार काफी अहम होता है। आरबीआई जब मॉनिटरी पॉलिसी तय करता है तो उसके लिए यह काफी अहम फैक्टर साबित होता है कि उसके पास विदेशी मुद्रा भंडार कितना है। यानि जब आरबीआई के खजाने में डॉलर भरा होता है तो देश की करेंसी को मजबूती मिलती है।
आयात के लिए डॉलर रिजर्व जरूरी
जब भी हम विदेश से कोई सामान खरीदते हैं तो ट्रांजेक्शन डॉलर में होती है। ऐसे में इंपोर्ट को मदद के लिए विदेशी मुद्रा भंडार का होना जरूरी है। अगर विदेश से आने वाले निवेश में अचानक कभी कमी आती है तो उस समय इसकी महत्ता और ज्यादा बढ़ जाती है। भारत बड़े पैमाने पर आयात करता रहा है लेकिन बीते कुछ साल में पीएम मोदी के नेतृत्व में देश ने अपने आयात स्तर को विदेशी मुद्रा व्यापार में भारत कम करके निर्यात स्तर को बढ़ाया है। पीएम मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ के दिखाए रास्ते पर देश अब चल पड़ा है तभी तो आज भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार बढ़ रहा है।
FDI में तेजी के मिलते हैं संकेत
अगर विदेशी मुद्रा भंडार में तेजी आती है तो इसका मतलब होता है कि देश में बड़े पैमाने पर एफडीआई आ रहा है। ऐसे में अर्थव्यवस्था के लिए विदेशी निवेश बहुत अहम होता है। अगर विदेशी निवेशक भारतीय बाजार में पैसा लगाते रहे हैं तो दुनिया के लिए यह संकेत जाता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर उनका भरोसा बढ़ रहा है। भारत सरकार ने इसके लिए भी देश में बीते कुछ साल में बेहतर माहौल तैयार किया है। केंद्र सरकार ने देश में ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ का माहौल प्रदान किया। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस एक तरह का इंडेक्स है। इसमें कारोबार सुगमता के लिए कई तरह के पैमाने रखे गए विदेशी मुद्रा व्यापार में भारत हैं। इनमें लेबर रेगुलेशन, ऑनलाइन सिंगल विंडो, सूचनाओं तक पहुंच, पारदर्शिता इत्यादि शामिल हैं। देश में इसे उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (डीपीआईआईटी) तैयार करता है। आज भारत इस लिहाज से भी काफी सुधार कर चुका है। यही कारण है कि विदेशी निवेशक अब भारत में निवेश को तैयार खड़े हैं।
विदेशी ऋण
सितम्बर, 2021 के अंत में भारत का विदेशी ऋण 593.1 बिलियन डॉलर था जो जून, 2021 के अंत के स्तर पर 3.9 प्रतिशत से अधिक था। आर्थिक समीक्षा में मार्च, 2021 के अंत में भारत के विदेशी ऋण ने पूर्व-संकट स्तर को पार कर लिया था लेकिन यह सितम्बर, 2021 के अंत में एनआरआई जमाराशियों से पुनरुत्थान की मदद और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा वन-ऑफ अतिरिक्त एसडीआर आवंटन की मदद से दृढ़ हो गया। कुल विदेशी ऋण में लघु अवधि ऋण की हिस्सेदारी में थोड़ी सी गिरावट जरूर आई। यह हिस्सेदारी जो मार्च, 2021 के अंत में 17.7 प्रतिशत थी सितम्बर के अंत में 17 प्रतिशत हो गई। समीक्षा यह दर्शाती है कि मध्यम अवधि परिप्रेक्ष्य से भारत का विदेशी ऋण उभरती हुई बाजार अर्थव्यवस्था के लिए आंके गए इष्टतम ऋण से लगातार कम चल रहा है।
भारत की लचीलापन
आर्थिक समीक्षा यह दर्शाती है कि विदेशी मुद्रा भंडार में भारी बढ़ोतरी से विदेशी मुद्रा भंडारों से कुल विदेशी ऋण, लघु अवधि ऋण से विदेशी विनिमय भंडार जैसे बाह्य संवेदी सूचकांकों में सुधार को बढ़ावा मिला है। बढ़ते हुए मुद्रा स्फीति दबावों की प्रतिक्रिया में फेड सहित प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण केंद्रीय बैंकों द्वारा मौद्रिक नीति के तेजी से सामान्यीकरण की संभावना से पैदा हुई वैश्विक तरलता की संभावना का सामना करने के लिए भारत का बाह्य क्षेत्र लचीला है।
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- नई दिल्ली,
- 07 जून 2022,
- (अपडेटेड 07 जून 2022, 11:19 AM IST)
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वर्तमान स्थिति से निपटने के लिए भारत के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार: आर्थिक मामलों के सचिव
आर्थिक मामलों के सचिव अजय सेठ ने कहा है कि विदेशी मुद्रा भंडार कम होने का कारण मुद्रा प्रवाह में कमी और व्यापार घाटा बढ़ना है। भारत के पास मौजूदा स्थिति से निपटने के लिए विदेशी मुद्रा का बड़ा भंडार है।
नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। आर्थिक मामलों के सचिव अजय सेठ ने विदेशी मुद्रा भंडार में कमी की चिंताओं को मंगलवार को खारिज करते हुए कहा कहा कि भारत के पास मौजूदा स्थिति से निपटने के लिए काफी मजूबत भंडार है। आर्थिक मामलों के सचिव ने कहा कि विदेशी मुद्रा भंडार में कमी को जरूरत से ज्यादा महत्व दिया जा रहा है।
विदेशी मुद्रा भंडार लगातार सातवें सप्ताह के लिए नीचे रहा। 16 सितंबर को यह 545.65 अरब अमेरिकी डालर तक गिर गया। मुद्रा भंडार में कमी का एक प्रमुख कारण वैश्विक गतिविधियों की वजह से रुपये की विनिमय दर में गिरावट को थामने के लिए आरबीआइ की तरफ से किया गया डालर का उपयोग है।
देश में विदेशी मुद्रा का पर्याप्त भंडार
आर्थिक मामलों के सचिव अजय सेठ ने कहा कि विदेशी मुद्रा भंडार में कमी का कारण विदेशी मुद्रा प्रवाह में कमी और व्यापार घाटा बढ़ना है। उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि यह कोई चिंता वाली बात है। भारत के पास मौजूदा स्थिति से निपटने के लिए विदेशी मुद्रा का बड़ा भंडार है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा पिछले हफ्ते बेंचमार्क उधार दर को 75 आधार अंकों से बढ़ाकर 3-3.25% करने के बाद दुनिया भर की मुद्राएं प्रभावित हुईं। आर्थिक मामलों के सचिव ने कहा कि सरकार का इरादा मार्च 2023 को समाप्त होने वाले चालू वित्त वर्ष के लिए राजकोषीय घाटे के लक्ष्य 6.4 प्रतिशत पर बरकरार रखने का है।
बेहतर है रुपये की स्थिति
आपको बता दें कि डालर के मुकाबले रुपया सोमवार को 81.67 के रिकार्ड निचले स्तर पर आ गया था। हालांकि, मंगलवार को यह कुछ सुधरकर 81.58 पर बंद हुआ। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को कहा था कि आर्थिक बुनियाद मजबूत होने से रुपये की स्थिति बेहतर है। डालर के मुकाबले अन्य देशों की मुद्राओं में जिस दर से गिरावट आई है, वह भारतीय रुपये की तुलना में कहीं अधिक है। सरकार ने बजट में चालू वित्त वर्ष के लिए 14.31 लाख करोड़ रुपये का सकल बाजार उधारी लक्ष्य रखा है। इसमें से 8.45 लाख करोड़ रुपये पहली छमाही या अप्रैल-सितंबर की अवधि में उधार लिए जाने का अनुमान है।
सोमवार को डॉलर के मुकाबले 81.67 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंचने के बाद मंगलवार को रुपया सुधर गया और ग्रीनबैक के मुकाबले 81.58 पर बंद हुआ।
चिंता करने की जरूरत नहीं, भारत के पास विदेशी मुद्रा का पर्याप्त भंडार
विदेशी मुद्रा भंडार: आर्थिक मामलों के सचिव अजय सेठ ने कहा, मौजूदा स्थिति पार पाने में सक्षम। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 545.65 अरब डॉलर पर आ गया है। मार्च 2022 में यह 607.31 अरब डॉलर था।
आर्थिक मामलों के सचिव अजय सेठ ने विदेशी मुद्रा भंडार में कमी को लेकर चिंता को खारिज करते हुए कहा कि इसे जरूरत से अधिक तूल दिया जा रहा है। मंगलवार को उन्होंने कहा कि मौजूदा स्थिति से पार पाने के लिए देश के पास विदेशी मुद्रा का पर्याप्त भंडार है।
लगातार सातवें सप्ताह घटा
विदेशी मुद्रा भंडार लगातार सातवें सप्ताह घटा है और यह 16 सितंबर को समाप्त सप्ताह में कम होकर 545.65 अरब डॉलर पर आ गया, जबकि मार्च, 2022 में यह 607.31 अरब डॉलर था। सेठ ने कहा, विदेशी मुद्रा भंडार में कमी का कारण विदेशी मुद्रा प्रवाह में कमी और व्यापार घाटा बढ़ना है। मुझे नहीं लगता कि यह कोई चिंता वाली बात है। भारत के पास मौजूदा स्थिति से निपटने के लिए विदेशी मुद्रा का बड़ा भंडार है।
डॉलर के मुकाबले रुपया सोमवार को 81.67 के अबतक के सबसे निचले स्तर पर आ गया था। आर्थिक मामलों के सचिव ने कहा कि सरकार चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा 6.4 प्रतिशत रखने के लक्ष्य पर कायम है और इसे हासिल किया जाएगा। सरकार ने बजट में 2022-23 में 14.31 लाख करोड़ रुपये की बाजार उधारी का लक्ष्य रखा है। इसमें से 8.45 लाख करोड़ रुपये चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही अप्रैल-सितंबर में जुटाने का लक्ष्य है।
क्यों घट रहा मुद्रा भंडार
मुद्रा भंडार में कमी का एक प्रमुख कारण वैश्विक गतिविधियों की वजह से रुपये की विनिमय दर में गिरावट को थामने के लिए रिजर्व बैंक की तरफ से किया गया डॉलर का उपयोग विदेशी मुद्रा व्यापार में भारत है। इसके अलावा व्यापार घाटा में वृद्धि भी है। निर्यात और आयात के अंतर को व्यापार घाटा कहा जाता है।
अन्य मुद्राओं से कम टूटा रुपया
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को कहा था कि वृहद आर्थिक बुनियाद मजबूत होने से रुपये की स्थिति बेहतर है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अन्य देशों की मुद्राओं में जिस दर से गिरावट आई है, वह भारतीय रुपये की तुलना में कहीं अधिक है। उल्लेखनीय है कि ब्रिटिश पाउंड विदेशी मुद्रा व्यापार में भारत डॉलर के मुकाबले टूटकर 40 साल के निचले स्तर पर चला गया है।
ऊंचे मुद्रा भंडार का क्या है फायदा
आयात के लिए खर्च और विदेशी कर्ज और उसका ब्याज चुकाने लिए सामान्यत: डॉलर की जरूरत होती है। इसके लिए किसी भी देश के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार जरूरी होता है। भारत कच्चे तेल का 80 फीसदी और खाद्य तेल का 60 फीदी आयात करता है। साथ ही जरूरी दवाओं और मशीनरी का भी आयात करता है। भारत का आयात खर्च प्रति माह करीब 40 अरब डॉलर है। जबकि विदेशी मुद्रा भंडार 545 अरब डॉलर है। ऐसे में भारत के पास करीब 14 माह के आयात खर्च के बराबर विदेशी मुद्रा भंडार है।
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